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________________ सन्धि 3 1. नागकुमारका विद्योपार्जन 'सिद्ध भगवान्को नमन करो' ऐसा कहकर नागने पुत्रको अठारह प्रकारको लिपियां दिखलायीं और वह मेधावी कामदेव उन्हें सीखने लगा। स्याहीसे काले अक्षर लिखना, गणित, गान्धर्व ( संगीत ) कला और व्याकरण भी सिखाया। नागकुमार नित्य पढ़ते-पढ़ते सरस्वतीका निवास पण्डित बन गया। उसने छन्द, अलंकार, निघण्टु, ज्योतिष, ग्रहोंकी गमन प्रवृत्तियां तथा काव्य व नाट्यशास्त्र सुने एवं समस्त आयुधोंका भी ज्ञान प्राप्त किया। पटह, शंख व सुन्दर तन्त्रीताल आदि ध्वनि-वाद्योंका अभ्यास किया। पत्तों पष्पों व फलोंको नाना प्रकारसे काटनेछाटनेकी रीतियाँ, घोड़ों व हाथियोंके आरोहणकी विद्याएँ, चन्द्रबल, स्वरोदय विधान, सतखण्डे महलोंके प्रमाण, तन्त्र-मन्त्र व वशीकरण, व्यूह-रचना, प्रहार-निवारण तथा नाना प्रकारके शिल्प * कुमारने अपने मनमें धारण कर लिये। उसने चित्र और चित्राभास भी लिखे / उसने इन्द्रजाल, शत्रु स्तम्भन, मोहन, लोगोंमें संक्षोभ उत्पन्न करनेवाली विद्याका साधन, पुरुष और स्त्रियोंके लक्षण ( सामुद्रिक ), भूषणविधि, कामुकविधि और सुखदायक सेवाविधि, गन्धयुक्ति, मणियों और ओषधियोंकी युक्ति तथा राजनीति भी सीख ली। जड़ मनुष्योंसे क्या, कोई बड़ा देव ही सब विद्याओंके मर्मको जान सकता है। यहां उस नागदेवने कामदेवको विशाल अर्थ सहित शास्त्रोंका व्याख्यान दिया // 1 // 2. राजनीतिको शिक्षा भले प्रकार उद्यम करनेसे एवं सन्मित्रके सहयोगसे ही छत्र, अश्व और हाथियोंयुक्त राजसम्पत्ति उत्पन्न होती है और आलस करने व नीच पुरुषोंकी संगतिसे वह नष्ट हो जाती है। वृद्ध वे ही हैं जो सज्जन और सुलक्षण होते हुए शास्त्र और कर्म सम्बन्धी विषयोंमें प्रवीण हों। ऐसे वृद्धजनोंकी सेवासे ही बुद्धि बढ़ती है और उससे पंचांग मन्त्रकी पुष्टि होती है। मन्त्र द्वारा कुसंगतिसे उत्पन्न अन्तरंग और बहिरंग शत्रु जीते जाते हैं। बाह्य शत्रुओंके विनाशसे राजाको अभीष्ट फलको सिद्धि होती है, तथा आभ्यन्तर शत्रुओंका विनाश करनेवाला नरेन्द्र विनयसे विभूषित होता है। विनयसे इन्द्रियोंपर विजय प्राप्त होती है व एक भी व्यसन उत्पन्न नहीं हो पाता / इस प्रकार प्रशंसनीय आत्मलब्धि प्राप्त होती है और धर्म व अधर्मका विवेक होने P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
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