________________ C नाभाक चरित्रं // 47 // // 47 // अर्थ-आ प्रमाणे जीवदयाना अधिकारमा प्राणीओने हिंसा करवायी केवां माठां फळ भोगवां पडे छे, अने दया राखवाथी केवां & अनुपम सुख भोगवे छे ते सर्वनुं एबुं स्पष्ट स्वरूप ते मुनिराजे समजाव्युं के जेथी भानु पोताना करेला पापथी कंपवा लाग्यो 192 M. यावज्जीवमथादाय, हिंसानियममुत्तमम् / साधुं स्वाऽवसथे नीत्वा, शुद्धान्नैः प्रत्यलाभयत् // 19 // अर्थ-हवे ते मुनिराज पासे जींदगी पर्यंत हिंसाना उत्तम नियमने ग्रहण करी, साधु महाराजने पोताने घेर लइ जइ शुद्ध अन्नथी पतिलाभ्या // 5 एवं तेनाऽर्जितं भोग-फलं कर्म ततोऽनिशम् / कृपावान् पूज्यते लोका-दाप्तस्वो जीविका व्यधात् // 194 // 4 5 अर्थ-आ प्रमाणे तेणे अहिंसावत ग्रहण करवाथी अने मुनिराजने भावपूर्वक वहोराववाथी भोगरूपी फळ आपनाएं शुभ कर्म उहै. पार्जन कयु. त्यार पछी निरंतर दयावाळो ते लोकोमा माननीय थयो, अने लोको पासेथी शुद्ध नीतिपूर्वक द्रव्य मेळवी पोतानी आ जीविका चलाववा लाग्यो / .194 // प्रान्ते मृत्वा दानपुण्याद्, राजन्! राजा भवानभूत् / शुद्धजीवदयापुण्याद्, रूपनिर्जितमन्मथः // 195 // द अर्थ-हे राजन् ! आयुष्य पूर्ण थतां भानु मरण पामी, मुनिराजने दान आपबाना मुण्यर्थी नाभक नामनो तुं राजा थयो छे, अने शुद्ध जीवदया पाळी उपार्जन करेला पुण्यथी कामदेव करतां पण तने अधिक रूप प्राप्त थयुं छे // 195 / / 81. चन्द्रादित्योऽपि सम्पूर्ण-निर्मापितजिनालयः / प्रायश्चित्तेन शुद्धात्मा, सौधमें त्रिदशोऽभवत् // 196 // अर्थ-पूर्वभवमा देवद्रव्यनो विनाश करवाथी कोढियो थयेलो चित्रपुरी नगरीनो राजा चन्द्रादित्य के जे मुनिराजना उपदेशथी परH e Gunratnasuri M.S. 5-5-%A5 SCIUGACAPELA Sun Aaradnak