________________ मेष्ठी महामंत्रन ध्यान करी छ मासमां कांचन जेवी कांतिकाळो थयो हतो, तेणे चित्रकूट पर्बतना शिखर उपर आरंभेल जिनालय में नाभाक 1. संपूर्ण कराव्युं. आवी रीते मायश्चित्त करो शुद्धात्मा थयेलो ते मरण पामी सौधर्म देवलोकमां देव थयो // 196 // चरित्रं त्वं तत्रैव भवे मूर्त-पुण्यवाजिनमन्दिरम / पातयित्वा पुरस्याऽस्य, परितो दुर्गमातनोः // 197 // // 48 // अर्थ हे नाभाकराजा! तुं भानुना भवमा मुरस्थल गाममां मुखी हतो तेज भवमां तें साक्षात् पुण्यस्वरूप जिनमंदिरने पाडी नाखी गामनी चारे बाजु किल्लो बनाव्यो हतो // 197 / / भूपैवं तत्र विप्रस्त्री-भ्रणगोतीर्थघातिनः / पञ्चहत्या इमाः सर्वाः, पुण्यविघ्ननिबन्धनम् // 198 // अर्थ-हे राजन्! आ प्रमाणे भानुना भवमां तें विपघात, स्त्रीघात, बालघात, गौघात, अने तीर्थघात, आवी रीते पांच मोटी हत्याओ है। IV करी हती, आ सर्व हत्याओ तने आ भवमां पुण्यतुं विघ्न थवानुं कारणभूत थयेली छे // 198 // 5 तत्रापि यात्राविघ्नस्य, तीर्थहत्यैव कारणम् ! अतस्तदपनोदाय, प्रायश्चित्तमिदं शृणु // 199 // 15' अर्थ-तेओमां पण तने शत्रुजयनी यात्रामां आवी पडेला विघ्ननुं कारण तो तीर्थहत्याज छे तेथी तेने दूर करवा माटे आ मकारे की प्रायश्चित सांभळ // 199 // तपोऽभूद वार्षिक मूल-मादिदेवस्य वारके / अष्टमास्यधुना भावि-वारे पाण्मासिकं ततः // 20 // अर्थ-तीर्थकर श्रीआदीश्वर प्रभुना वारामा मूळ बार मासी तप हतो, अत्यारे आठ मासीतपछे, अने भाविकाळमांछ मासी तप थशे॥२०॥ 4%A5-%ERONOCODAI RACGunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradnak