________________ RAPHRSS चरित्रं // 46 // अर्थ-मुनिए जवाब आप्यो के–' नरक गति प्राप्त थवाना कारणभूत राज्य मारे काइ पण काम नथी, परंतु सर्वे साधुओ मोक्ष मेळववा माटे तपश्चर्या करे छे' // 187 // नाभाका को भोक्ष इति तेनाऽपि, पृष्टः साधुरभाषत / संसार-मोक्षयोळक्तं, स्वरूपं बहुयुक्तिभिः // 188 // // 46 // अर्थ-भानुए पच्यु के-'मोक्ष एटले शृं? त्यारे मुनिराजे तेने संसार अने मोक्षनुं स्पष्ट स्वरूप घणीज युक्तिपूर्वक समजाव्यु॥१८॥ असौ जन्मजरामृत्यु-मुख्यक्लेशसहस्रभूः / चतुर्गतिकसंसारः, कस्य स्यान्न विरक्कये? // 189 // & अर्थ-वळी जणाव्यु के जन्म जरा अने मृत्यु विगेरे हजारो दुःखथी गहन बनेला चार गतिरूप आ संसारथी कोने वैराग्य न थाय? शाश्वताऽनन्तसोख्यश्री-निवासं वासवा अपि / स्वर्गसौख्यमनादृत्य, याचन्ते मोक्षेमृत्तसम // 190 // अथ -शाश्वता अने अनंता सुखरूप लक्ष्मीनुं निवास स्थान मोक्ष छे, आ मोक्षसुख पासे स्वर्ग सुख पण तुच्छ छे अने तेथीज इन्द्रो पण स्वर्ग सुखनो अनादर करी आवा अनुपम मोक्षने माटे याचना करी रह्या छे // 19 // .... परंस प्राप्यते प्रायः, कृतेः सुकृतकर्मभिः / मुख्यं तेष्वपि सर्वज्ञः, सर्वसत्त्वकृपोच्यते // 191 // ... * अर्थ-इन्द्रो पण जेनी पासे पोतानुं स्वर्गसुख तुच्छ समजी जेने माटे तलसी रह्या छे एवो उत्तमोत्तम मोक्ष प्रायः सुकृत कर्मो वडे जीवो प्राप्त करे छे. ते सुकृतकर्मोमां पण सर्व जीवो उपर करुणाभाव राखवो ए मुख्य सुकृतकर्म सर्वज्ञोए कयु छे // 19 // पाधिकारे जीवानां, हिंसाऽहिंसाफलं तथा / उपादिष्टं यथा भानु-श्चकम्पे निजफापकैः // 592 // CASE REPRO C.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak