________________ भीमेहतुजरिविरचित श्रीनामाकराजाचारितम् | समुद्रसिंहयो गगोष्ठिकस्य च मा कथा॥ तत्र न्यकृतकल्पद्रुर्डिण्डिमोद्घोषपूर्वकम् // यथा युगन्धराचार्य: प्रोक्ता स्वामी तथाऽऽदिशत् // 26 // स्वमर्थमर्थिसाइन्सन्नदारिद्रं जगद् व्यधात् // 27 // पुन: प्राह प्रभु पं न पूर्वकृतकर्मत:।। अथपुण्यपवित्रात्मा क्षालिताऽखिलकश्मलः / / विमुच्येत क्वचित कोऽपि त्वमेवास्य निदर्शनम् / / 262 // गुरुभिः सह भूपाल: प्रतस्थे स्वपुरं प्रति // 272 // त्वया सिंहभवे यात्राऽन्तरायोऽकारि बान्धवम् // अनुपानद् गुरोर्वामभागेन पथि सश्चरन् / धारयित्वा स विज्ञेयो वृद्धः सोपानलोढकः // 26 // दर्शयन् उच्चनीचां च भुवं भक्ताग्रणीरभूत् // 273 // असौ नागस्य जीवोऽपि चन्द्रादित्यभवे पुरा॥ चन्द्रादित्यसुर: सेना - मानं छत्रं वितानयन् // क्षालिताखिलासत्कर्मा सौधर्मऽजनि निर्जरः // 26 // चामरांवालयन पार्श्व - द्वये सद्गुरुभूपयोः // 27 // इति सीमन्धरस्वामी - मुखात्तौ चरितं निजम्॥ संवर्तकानिलनाग्रे कण्टकाघपसारयन् // श्रुत्वा प्रीती जिनं नत्वा, शत्रुअयमगच्छताम् // 26 // गन्धोदकस्य वर्षेण मार्गस्थं शमयन् रजः॥२७५॥ तत्र श्रीआदिदेवस्य स्नात्रपूजामहोत्सवम।। सुगन्धिभिः पञ्चवर्णर्दिव्यपुष्पैर्भुवं स्तृणन् / कृत्वाऽष्टाहत्रयं भक्त्या तौ स्वं धन्यममन्येताम् // 266 // संचारयन पुरस्थं च योजनोच्चमहाध्वजम् // 276 / / अथ शाश्वतपूजार्थ - सर्वाङ्गाभरणानि तौ॥ एतयोरवमन्तारो, यास्यन्ति प्रलयं स्वयम्।। कारयित्वा महापूजा - क्षणेऽरोपयतां क्रमात् // 267 / / एतत्पादाब्जनन्तारो, बर्द्धिष्यन्ते महाश्रिया॥२७७॥ माणिक्यरत्नखचितां दत्त्वा हैमी महाध्वजाम् // इत्यम्बरगिरा साकं दुन्दुभिं दिवि ताडयन् / / अभङ्गरसङ्गीतभक्तिं दर्शयतश्च तौ // 268 // गुरूणां विदधे भक्तिं, सान्निध्यं च महीपतेः।।२७८॥ एवं निर्माय निर्मायौ, प्राप्यप्रौढप्रभावना:।। इत्थं प्रतिपदं नैकभूपैः प्राभृतपाणिभिः॥ सर्वज्ञशासनन्नित्यं, तो व्यस्तारयतां चिरम् // 269 // प्रवर्धमानभव्यश्रीनृपः प्रापन्निजं पुरम् // 279 // अथाऽनन्तगुणोत्साहबद्धरोमाञ्चकभुकः।। गुरवोऽपि ततो दत्त्वा, श्रीपन्नाभाकभूपतेः॥ नाभाकभूपतिर्धर्मशालास्थानमशिश्रियत् // 27 // सम्यक्त्वमूलनालाणु - व्रतानि व्यहरन् भुवि // 28 // PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust