________________ भीमेरुतुजरिविचित श्रीनामाकराजाचरितम् निश्चित्येत्यनुपानत्क: क्षरद्रक्ताकुलक्रमः॥ एवं वदन्त्य: शीताम्भ:सिता-द्राक्षाम्भसी अपि॥ तप:क्रान्तस्तृषाक्लान्त: परिश्रान्त: क्षुधादितः // 241 // सिताघृतपुर:स्निग्ध - पायसादि च तत्पुरः // 25 // मध्यालातपसंतप्तवालुकाभिः पथि ज्वलन / / प्रदर्श्य चादभिर्वाक्य - रूपसर्गाननेकशः।। अनिर्विण्णमना देवध्यानादेव चचाल सः ॥२४शायुग्मम्।। पूर्व - कृत्वाऽनुकूलांस्ता:, प्रतिकूलानपि व्यधुः // 252 // अपराहे, पुर: कापि कयाचिन्नवीन स्त्रिया। तथाप्यक्षुब्धचेता: स,धर्मे यावदवस्थितः॥ ढौकितं न फलमादत् सत्त्वान्नापि पय: पपौ॥२४३॥ श्री शत्रुअयश्रृङ्गस्थं, तावदात्मानमैक्षत // 253 // तया सह महःस्तोम - व्योमव्यापिनि मन्दिरे॥ अहो! किमेतदित्येवं, साश्चर्ये नृपपुङ्गवे॥ आश्चर्यपरिपूर्णान्त: स्वच्छेन मनसा ययौ॥२४४॥ सौरभ्याकृष्टभृगालिः, पृष्पवृष्टिर्दिवोऽपतत् // 25 // स तत्र चित्रकृद्रूपाः, सारश्रृङ्गारहारिणीः॥ पुर: सुर: स्फुरत्कान्तिः कश्चित काश्चनकुण्डलः॥ हरिणाक्षीनिरक्षिष्ट, विलसन्ती: सहस्रशः // 245 // प्रादुर्भूयत्यभाषिष्ट, कुर्वन जयजयारबम // 255 // तासां मध्यादथोत्थाय स्वामिनी हंसगामिनी॥ तब प्रशंसां सद्धर्मन्! सौधर्मस्वामिनिर्मिताम्॥ योजिताअलिरभ्येत्य सानुरागमदोऽवदत् // 246 // असासहिरहं सर्व - मकार्षमिदमीदृशम् // 256 // अस्मदीयेन भाग्येन समेतोऽसि गुणोदधे॥ तत् क्षमस्व महाभाग! यदेवं क्लेशितो भवान्।। स्त्रीणां राज्यमिदं विद्धि योऽति पतिरेव नः // 247 // तुष्टोऽस्मि तव सत्त्वेन, बरं वृणु वरं वृणु // 257 // श्रुत्वेति नृपतिर्दध्यौ संकटान्तरमागतम् // राजाऽवोचन्न याचेऽह - माप्तधर्मधन: परम् / / मौनमेवाऽत्र मे श्रेयो मौनं सर्वार्थसाधनम।२४८॥ परं सीमन्धरस्वामि-निनंसां मम पूरय // 258 // इति तूष्णीं स्थिते भूपे, मुख्यादिष्टाः स्त्रियोऽपि ताः॥ अथो देवगुरून्नत्वा, सत्त्वाधिकशिरोमणिः // स्नानभोजनसामग्री, सजीकृत्योपतस्थिरे॥२४९॥ नाकिक्लप्तविमानेन, विदेहेषु ययौ नृपः // 259 // प्रसघ सध: प्राणेश! स्नात्वा मुक्त्वा यथारुचि॥ तत्रा अष्टप्रातिहार्यश्री - सेव्यं सीमन्धरं जिनम् // . यावज्नीवं सहाऽस्माभि भॊगान भङक्ष्वाकतोभयः॥२५॥ नत्वाऽपृच्छच्चिरत्नो मे ऽन्तरायः कोऽयमित्यसौ // 26 // श P.P.AC.Gunratnasuri M.S Jun Gun Aaradhak Trust