________________ * | भीमेहतुङ्गत्रिविरचित शीनामाकराजाचरितम् | अथ देवस्य सान्निध्यात वासुदेव इव स्वयम्॥ भूपाली भरतार्धस्य त्रीणि खण्डान्यसाधयत् // 28 // भूमिपतिसहस्राणां, षोडशानां च मूर्धनि॥ आज्ञा संस्थाप्य राज्यं स्वं धर्म च समपालयत् // 282 // त्रिकालं देवमभ्यर्चन, द्विसन्ध्यम् सद्गुरून्नमन् / षडावश्यककृत्यम च, तन्वन् राज्यफलम् ययौ // 283 // प्रतिग्रामपुरम् जैन - प्रासादास्तुणतोरणाः / / व्यधाप्यन्त नरेन्द्रेण, धर्मशाला: सहस्रशः // 28 // महिलीकपरद्रोह - पैशून्यकलिमत्सराः॥ निमूलम् वारिता: सप्त - व्यसनानि विशेषतः // 285 // मिथ्यात्वम् पापमन्यायम्, विधत्ते मनसाऽपि यः॥ तस्य देव: स्वयम् शिक्षाम, दत्ते तत्क्षणमेव सः॥२८६॥ तद्देशवास्तव्यजना - स्तत: पुण्यैकबुद्धयः॥ राजवाऽनुवर्तन्ते, यथा राजा तथा प्रजाः // 287 // एवम् यथा यथा पृथ्व्या पुण्यवृद्धिस्तथा तथा॥ __ काले वृष्टिर्धान्यपुष्टिर्बहु पुष्पफला द्रुमाः // 288 // बहुक्षीरप्रदा गाव: बहुरत्नाश्च खानयः॥ व्यवसाया महालाभा दूरदेशा: सुसश्चराः // 289 // . निरामया निरातङ्का महासौख्याश्चिरायुषः।। पुत्रपौत्रादिसन्तान वृद्धिभाजोऽभवन् जनाः // 290 // एवम् तद्राज्यलोकानाम्, धर्मशर्मनिरीक्षणात् // हियेव स्वर्गिणोऽभूवन्न दृश्या धर्मवर्जिताः // 291 // श्रीनाभाकधराधीश: प्रपाल्येति चिरम् स्थिरम्।। राज्यम् प्राज्यम् प्रान्तकाले संसाध्याऽनशनम् सुधीः / / 292 // अगाद द्वादशकल्पेऽथ, नृजन्माऽवाप्य सेत्स्यति।। देवोऽपि प्राप्य मानुष्यं, शाश्वतम् सौख्यमाप्स्यति // 29 // श्री नाभाकनरेन्द्रस्य निशम्येदम् कथानकम्।। देवद्रव्याच्च दूरेण नित्यम् स्थेयम् मनीषिभिः // 29 // श्रीमदश्चलगच्छेश - श्रीमेरुतुङ्गसूरिभिः।। युगर्तुयुगभूसङ्ख्ये, वर्षे निर्मिता कथा // 29 // ॥इति श्री नाभाकराजचरितम्।। P3 Cantinas SE PERARE AREER न