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________________ धर्म प्राशुके विपुले शुझे / नृतले जंतुवर्जिते // नपविष्टास्तनुबाया-गदिताखिलदिन मुखाः // 4 // / सितवस्त्राः स्वदंतांशु-शुभ्रताखिलदिङ्मुखाः // साधुसमूहमध्यस्था / मध्यस्थाः सोममूर्तयः / / // 45 // सजलमेघनादेन / कुर्वाणा धर्मदेशनां // जव्यपद्मप्रबंधानां / बोधने नवगास्कराः // // 46 // अष्टभिः कुलकं // प्रणिपत्य कुमारेण / पृष्टा धर्म मुनीश्वराः // ततस्ते वक्तुमारब्धाः।परोपकृतिचंचवः // 4 // अहिंसैव परो हेतु-धर्मस्योक्तो जिनेश्वरैः // शेषस्तु परिवारोऽस्य / सत्यवादादिरिष्यते // 4 // यां यां जीवाः प्रपद्यते / गति कर्मवशानुगाः / तत्र तत्र प्रकुर्वति / र. तिं हिंसानिबंधने // 4 // यद्येको वसुधां दद्या-दन्यो दद्याच जोवितं // विहाय वसुधां जीतो / जीवो गृह्णाति जीवितं // 20 // किमत्र बहुनोक्तेन / स्वसंवेद्यमिदं नृणां // यथा खं जीवितं कांतं / सर्वेषां प्राणिनां तथा // 51 // तस्मादेवंविधं मूढा / जीवितं ये शरीरिणां // हरंति रौद्रकर्माणः / पापं किं किं न तैः कृतं // 55 // जीवानां जीवितं हत्वा / कर्मचारगुरुकृताः॥ पतंति न रके जीवा / अयःपिंको यथा जले / / 53 // मधु श्रवंति ये वाचा / हृदये विषदारुणाः // कायेन P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036436
Book TitleDharmratna Karanda Tika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhamansuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1915
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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