________________ धर्मः / // 7 // स्वयं चचाल जात्याव-खुरोक्षुम्ममहीतलः // दमघोषमुनींडाणां / वंदनाय धराधिपः॥ | // 13 // गत्वा प्रदक्षिणापूर्व / वंदित्वा भक्तियोगतः // नातिदरे न चासन्ने / स निषाः कृतांज. | लिः // 14 // त्रिनिर्विशेषकं // __प्रारब्धा दमघोषेण / सूरिणा धर्मदेशना // श्रादौ धर्मस्य सम्यक्त्वं / तस्य शुधिविधायकं // // 79 // चैत्यवंदनमाख्यातं / तच पूजापुरस्सरं // पूजा च मुखकोषादि-विधानेन महाफला // // 76 // युग्मं // परिणामोऽपि पूजायाः / समीहितफलप्रदः // विधान विधिना दत्ते / किं किं ना. त्र शरीरिणां // 7 // यतः-चैत्यपूजनतः सम्यक् / शुनो जावः प्रजायते // तस्मात्कर्मदयः सर्व / ततः कल्याणमश्नुते // 70 // एष एव जगत्सारः / शुनो जावः प्रकीर्तितः // एष एव जगत्त्रा. ए-मेष एव च बांधवः // 70 // एष एव जवावते / पततामवलंबनं // एष एव वाटव्या-म. टतां मार्गदर्शकः // 70 // एष एव निषक्कटपः / सर्वव्याधिनिषूदनः / एष एव गदोबेद-करणे | परमौषधं // 71 // एष एव महामंत्रः / परमानंदकारणं // एष एव परं तत्वं / संमतं तत्ववेदिनां॥ | // 2 // एष एव कुमानुष्य-दुःखविबेददायकः / एष एव कुदेवत्व-मनःसंतापनाशकः // 7 // PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust