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________________ धर्म- रत्नचंद्रकुमारेण / मातापित्रोः सविस्तरः // कथितो निजवृत्तांतो / यावदन समागतः // 61 // तः | | तो राजाब्रवीदेवं / नास्त्यसाध्यं सुकर्मणां // विपदोऽपि हि पुत्रस्य / संपदो विधिना कृताः // 6 // | कालेन गलता जाताः / पुत्रा जनमनोहराः // कुमारस्य कृतार्थोऽस्मि / मुदितो मेदिनीपतिः॥६३॥ ततो दत्वा निजं राज्यं / रत्नचंद्राय धीरधीः // धर्मस्थाने धनं वरि / विनियोज्य विधानतः // 6 // दमघोषमुनींद्राणां / समीपे व्रतमुज्ज्वलं // विधाय विधिना धीरो / जगाम त्रिदशालयं // 65 !! युग्मं // रत्नचंद्रनरेंद्रोऽपि / पालयामास हेलया // स्वराज्यं नामिताशेष-पालकृतसन्नतिः // 66|| साधिताशेषदुदीतं / पालिताखिलधार्मिकं / कोषागारादिसंपूर्ण / सुरंजितजगानं // 67 / / समुससघशोराशि-धवलीकृत ऋतलं // एकातपत्रमुत्खात-कंटक मेदिनीतलं // 10 // त्रिनिर्विशे. षकं // कांतकांतासुखासक्तो / धर्मार्थकृतसेवनः॥ सर्वलोककृतानंदो / कालं नयति नृपतिः // 6 // एकदा च समागत्य / पुरुषेण ससंज्रमं // विझसोऽसौ यथा देव / दयासुंदरनामके // 10 // त्व. उद्याने समायाता / दमघोषमुनीश्वराः / / प्राशुके मिजागे च / तस्थुः शिष्यगणान्विताः / / 11 / / युग्मं // तत् श्रुत्वा रंजितो राजा / दत्वास्मै पारितोषिकं / / पुरुषं प्रेषयामास / चतुरंगबलान्धितः // / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust . .
SR No.036436
Book TitleDharmratna Karanda Tika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhamansuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1915
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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