________________ कारा वसुंधरा // 25 // दंतव्यं मम तातेन / यदात्मा परिणायितः / / गुरूणां हि प्रमोदाय / मि जदुश्चेष्टितं मम // 26 // राजाह मर्षितं पुति / ते जर्ता कुत्र सांप्रतं // अत्रांतरे वनावस्थो / र. | लचंद्रस्तयेदितः // 27 // तत्समीपे स्थिता रत्न-मेखला मुदितानना // दृष्टा मदनमंजर्या / त तः पित्रे निवेदितं // 20 // तेनापि स समाहूतः / समायातस्तदंतिके / / पृष्टश्च जो महासत्व / र. लचंडः कुतो नवान् // 27 // स च प्राह सुवेलाख्य-पर्वतात्तु परित्रमन् // प्रयोजनवशादत्र / | संप्राप्तो जिनमंदिरे // 30 // ततो गतस्तमादाय / हेमचंद्रो निजे पुरे / सकलत्रो धृतस्तत्र / गुरु | गौखयोगतः // 31 // हेमचंद्रनरेंजेण / पृष्टा मदनमंजरी // ब्रूहि त्वं यदि जानासि / विस्मयो म | म वर्तते // 32 // नानारूपधरः कोऽयं / वडूपेण च मद्गृहे // स्थित्वा गतो न वार्तापि / कथि | ता तेन गबता // 33 // साचख्यौ ज्ञातवृत्तांता / स्वपित्र नर्तृचेष्टितं // यथावझानियानेन / द र्शितििनजा तव // 34 // ततो रंजितचित्तेन / हेमचंण जल्पितं // अहो वीर्यमहो लब्धि ऋमिगोचरचारिणः // 35 // जूमिगोचर इत्येषा / अनास्था नैव संगता // विद्याधरोऽयमित्येष / | बहुमानोऽस्तु संगतः // 36 // ततोऽसौ दिगुणस्नेहः / संपश्यति वधूवरं // स्वमुतातो विशेषेण / / P.P. Ac Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust