________________ धर्मः / हेमविऋषिताश्च तुरगा हेषंति यद्दर्पिताः // वीणावेणुमृदंगशंखपणवैः सुप्तश्च यद्धोध्यते / तत्सर्वं सुः / | रलोकसौख्यसदृशं धर्मस्य विस्फुर्जितं // 70 // एवमुक्त्वा गतो देवः / दणादेव सुरालये // ततो गतः कुमारोऽपि / पुरे गगनवाने // 71 // मा मेऽवज्ञा भवेत्तत्र / नूनं श्वशुरमंदिरे / रूपं म. दनमंजर्या / विधाय तद्गृहे गतः // 2 // पिता कंठग्रहं कृत्वा / रुरोद जननी तथा // हा वत्से क गतासि त्वं / केनानीतासि सांप्रतं // 3 // तयापि कथितं सर्व / येन नीता च यत्र च // यानीता रत्नचंण / रत्नशेखरसूनुना // 4 // कासौ कासौ महानाग-स्तैः ससंघ्रममूचिरे // तव संकल्पितो नर्ता / जामाता पुनरावयोः // 5 // कन्यका प्राह मां हारि / मुक्त्वा तेन ति. रोदधे // यत्संबंधिगृहे संतो। न विशंति यतस्ततः / / 06 // - ततश्च हेमचंखेण / वायुवेगास्तुरंगमाः // वरवेगा महाप्राणा / योधाश्चापि समंततः // 7 // संप्रेषिताः प्रयत्नेन / कुमारान्वेषणाकृते // गत्वागता न तैर्दृष्टो / रत्नशेखरनंदनः / / // सखेदः पार्थिवो जातः / साशंका हेमसुंदर // अहो गृहागतो दूरी-जूतो जामातृकः कथं // 7 // य. द्यसावुपरोधेन / नागबति गृहे स्वयं // किमर्थं च करे कृत्वा / नानीतः पुत्रिके त्वया // 70 // | PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust