________________ टीका धर्मः / व गते ते कथं चापि / केन नीते मम प्रिये // 10 // ___एवं चिंतातुरो यावत् / स तिष्टति कुमारकः // तावदेकं सुरं कांतं / संपश्यति पुरः स्थितं / / // 31 // देवः प्राह कुमार त्वं / किं जानासि न वेति मां // न वेति कुमरो ब्रूते / सुरः प्राह निशम्यतां // 12 // सोऽहं विद्याधरो जऽ / यस्तु निर्या मितस्त्वया // मृत्वाहं पंचमे कटपे / शकतुल्यः सुरोऽजनि / / 73 // तदहो मा कृथाः खेदं / त्वदीये यद्गते प्रिये // अचिरादेव ते ताभ्यां / साध संगो जविष्यति // 14 // चिंतारत्नमिदं सर्व / चिंतितार्थप्रदायकं / गृहाण कुरु मे तुष्टिं / कुमारोऽपि तथाकरोत // 35 // सुरः प्रोवाच भूयोऽपि / कुमर त्वं व्रजाधुना // वैताब्यपर्वते रम्ये। पुरे गगनवल्लने / / 16 // स्थातव्यं च त्वया तत्र / हेमचंऽस्य मंदिरे // तिष्टतस्तत्र ते सर्व / सं. पत्स्यते समीहितं // 9 // तथा नऊ त्वया यत्नः / कार्यो धर्मे जिनोदिते // धर्म एवांगिनां ये न / सर्वकल्याणकारकः / / 30 // यतः-धर्माऊन्म कुले शरीरपटुता सौजाग्यमायुधनं / धर्मेणैव भवंति निर्मलयशोविद्यार्थसंपत्तयः // कांताराच्च महागयाञ्च सततं धर्मः परित्रायते / धर्मः सम्यगु. | पासितो भवति हि स्वर्गापवर्गप्रदः // 7 // यन्नागा मदनिन्नगमकरटास्तिष्टंति निद्रालसा / हारे | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust