________________ टीका | धर्मपोतमारोप्य / देव तारय तारय // 40 // ध्वस्तमिथ्यात्वनिष्स्त्वं / त्वं निद्रासुप्रबोधकः // मि. थ्यात्वनिष्या सुप्तं / मां प्रबोधय बोधय // 41 // किंबहुनांतरैः सर्वैः / शत्रुजिः सततं सदा // ह. न्यमानं जगत्त्रात-मिपालय पालय // 4 // अनंतपरमानंद-युक्त मुक्तिसुखालय // सुप्रसन्नं मनः कृत्वा / मां प्रापय शिवालये // 43 // त्वं स्वामी स्वं च मे बंधु-स्त्वं मित्रं त्वं च मे गुरुः // त्राणं त्वमेव देवेश / नृयाज्जन्मनि जन्मनि // 4 // नवं जवसंत्रांत-जंतुसंवानरदांक // नृयान्मे जूयसी जक्ति-स्त्वय्येव परमेश्वर / / 4 / / तथा प्रसीद मे नाथ / शरणागतवत्सल // यथाज्ञां तावकी पूर्णा-मासंसारं करोम्यहं // 46 // एवं स्तुत्वा जिनाधीशं / संवेगजरनिरः // जिनालयादिनिःक्रम्य / निषमः सोऽपि मंडपे // 7 // ततो गत्वा कुमारोऽपि / तं ननाम नतांगकः // नपविश्य तदासन्ने / पप्रबेदं कृतांजलिः // 4 // केनेदं कारितं तुंगं / सुंदरं जि. नमंदिरं // को वा देवाधिदेवोऽयं / कुतो वा त्वं समागतः // 4 // गंतव्यं वा त्वया कुत्र / कुत्र वाव स्थितिस्तव // स प्राह श्रूयतां वत्स / सावधानेन कथ्यते // 50 // ' वैताब्यपर्वते रम्ये / पुरे गगनवल्लभे // सूरपनाभिधस्तत्रा-नवन्मम पितामहः // 51 // ते. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust