________________ धर्मः | नेदं कारितं वत्स / जिनवेश्म मनोहरं // युगादिदेवदेवोऽय-मृषभो जिनपुंगवः // 55 // था / - गहामि त्वहं तस्मा-पुराद्गनवल्लनात् // गंतव्यं तु न कुत्रापि / मया मर्तव्यमत्र हि // 13 // यतः कल्ये समायातो। विद्याचारणसन्मुनिः // केवलज्ञानविज्ञात-विश्वव्यापार विस्तरः // 14 // स वंदित्वा मया पृष्टः / प्रमाणं निजकायुषः // तेनोक्तं दिवसा जद्र / पंचैव तव जीवितं // 55 // तत्त्यक्त्वा सर्वमारंभ-मुद्यब स्वहितंप्रति // कुरु पारत्रिकं कार्य / धर्मे चित्तं निवेशय // 16 // आकर्येदं ततस्तूर्ण-महमत्र समागतः // विधिनानशनं कृत्वा / मरिष्यामि गिराविद / / 57 // तत्तवापि जिनो देवः / पूजनीयोऽस्तु सर्वदा / / धर्मस्तेन प्रणीतोऽस्तु / गुरवस्तु सुसाधवः // 17 // तथा जो न त्वया जीवा / मारणीया निरागसः / / नैवालीकं वचो वाच्यं / नो कार्यान्यधनस्पृहा // एए // परदारा न जोक्तव्याः / कार्यो नातिपरिग्रहः // मद्यं मांसं च द्यूतं / दूरतः परिवर्ज येः // 60 // पापर्षि मा कृथा वत्स / मा कृथा रात्रिनोजनं // माश्नीयाः फलमझातं / वेश्यासक्तिं च मा कृथाः / / 61 // त्याज्यो दुर्जनसंसर्गः / कार्या सज्जनसंगतिः // तदेष श्रावको धर्मः / सि. सिौख्यकरोऽस्तु ते // 6 // तथैनं जो महासत्व / गृहाण विधिपूर्वकं // मंत्रं पंचनमस्कार PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust