________________ धर्म | लावली च तस्याग्र-महिषी विश्वविश्रुता // संसारसुखसर्वस्वं / हरस्य ललिता यथा // 6 // त. टीका या साधे महाशस्य / कुर्वतः कामसेवनं // संजातस्तनयः सारो। नववृदफलोपमः॥ // समये प्रतिष्टितं नाम / रत्नचंद्र इति स्फुटं // ततोऽसौ वर्धते विश्व-माह्लादयन् यथा शशी // // का. ले समर्पितो राज्ञा / कलाग्रहणहेतवे // कदाचार्यस्य तेनापि / पाठितः सकलाः कलाः // 7 // ततो यौवनमारूढः / परिणीतनृपांगजः // युवराजपंदे पिता / प्रमोदेन प्रतिष्टितः // 10 // एकदा चाश्ववाहिन्यां / निर्गतो हयहेषया / पूरयनंबरं सर्व / महाटव्यां विवेश सः // 11 // ततोऽप्यपह. तोऽश्वेन / सुवेलगिरिगहरे // नीत्वा मुक्त्वा ततो वाजी / जगामादर्शनं क्षणात् / / 1 // कुमारोऽपि पिपासातः / श्रांतो विस्मितमानसः // पपौ निर्मरनियूढं / शीतलं निर्मलं पयः / / 13 / / कंदमूलकृताहार / स्तश्चेतश्च पर्यटन // ददशैकत्र शुब्रोचं / सुंदरं जिनमंदिरं // 14 // प्रविष्टस्तत्र सानंदो / रोमांचांचितविग्रहः // सर्वतोऽपि दिपंश्चक्षुः / कौतुकादिप्तमानसः // 15 // शांतं कांत शिवं सौम्यं / सुरूपं सुमनोहरं // विवं युगादिदेवस्य / दृष्ट्वात्यर्थ मुमोद सः / / 16 / / / ततश्च चिंतयामास / विस्मितो हर्षनिर्नरः / यथा कोऽप्येष निःशेष-विश्ववंद्यो जगत्पनुः।। Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.