________________ धर्म | विए एवं जिणस्स विंबंमि // अठोत्तरकलससएण / मज्जिए पुण जहा विहवं // 46 // पूयाइए- | का सु जत्तो / परमोपदियहमेव कायबो॥ एवं जयंताण लहुं / जायश् चारित्तपरिणामो // 4 // अथ पूजाविधिमुपदर्शयन् श्लोकमेकमाचष्टे // मूलम् ॥–विधिना शुचितेन / काले सत्कुसुमादिभिः // स्तुतिस्तोत्रैश्च गंजीरैः / कतव्यं जिनपूजनं // 1 // व्याख्या-विधिना विधानेनाशातनापरिहारेण मुखंस्थगनलक्षणेन शु. चितेन द्रव्यगावशौचवतेत्यर्थः, काले संध्यात्रयलदणे सत्कुसुमादिनिः शोननपुष्पादिन्निः स्तुति स्तोत्रैश्च लघुद्भिः स्तवनैश्च गंजीरैगनीराथैः कर्तव्यं विधेयं जिनपूजनं जिनार्चन मिति श्लोकसमासार्थः // 1 // तत्र विधिरागमविजिरेवमुक्तस्तद्यथा-वण बंधिळणं / नासं अहवा जहा स. माहीए / / वङोयत्वं तु तया / देहमिवि कंमुयणमाई // 1 // शिवावि सामिणो तिह। जत्तेण कु. पति जे जसपिगं // हंति फलजायणं ते / श्यरेसिं किलेसमेत्तं तु // // जुवणगुरूण जि. णाणं / विसेसन एवमेव दट्टत्वं // ता एवं त्रिय पूया / एयाण बुहेहिं कायवा - // 3 // इत्यादि. शुचितत्वं पुनरेवमुक्तं तब सुश्णा दुहावि हु / दुवे न्हाएण सुवनेण // भावे न अवहो / Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasun M.S.