________________ धर्म-- | रयित्वा पूजयेदयेत् प्रतिवासरं प्रतिदिनमिति. तत्र विधाप्य विधिना श्राफ इत्यनेन जिनजवनं का विधिनवाधिकारिणैव च कारयितव्यमिति दर्शयति. तत्राधिकारी गृहस्थ एव शुजस्वजनादिविशेष णयुक्तो वेदितव्यः, यत उक्तं अहिगारिन य गिहबो / सुहमयणो वित्तसंजुन कुलजो // अ| खुद्दो धीवलिज / ममं तह धम्मरागी य // 1 // गुरुपूयाकरणरुई / सुस्सूसाश्गुणसंगन चेव // नाया अहिगयविहाणस्स / धणियमाणो पहाणो य // 2 // एसो गुणिहिजोगो / अणेगसत्ताण तीएविणिजंगा // गुणरयणवियरणेणं / तं कारितो हियं कुण // 3 // तं तह पवत्तमाणं / दई केश गुणरागिणो मग्गं // अन्ने उ तस्स बीयं / सहुजावान पवति // 4 // जो चिय सुहगावो खबु / सबन्नुमयंमि होइ परिसुघो / सो चिय जाय बीयं / बोहीए तेण नाएण // 5 // जिननवनविधिः पुनः शुमिग्रहादिकः, नणितं. च-जिणगवणकारणविही / सुधा नमी दलं च कछाई // नियगाण य संधाणं / सासणवुढी य जयणा य // 1 // दवे जावे य तहा / सुघा जू. मी पएसकीला य // दवे अपत्तिगरहिया / अन्नसि होइ जावेन // 2 // इत्यादिर्जिनजवनवि. धापनविधिर्वक्तव्य इति. तथा तत्र बिंब प्रतिष्टाप्येत्यनेन जिनविप्रतिष्टाविधिः सूचितः, स चे का। - P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust