________________ टीका धर्मः / . . . . // मूलम् // यस्याधिकारिणो ज्ञेया। विविधस्याप्यगारिणः // प्रायो जावस्तवे चैव / सा - धूनामधिकारिता // 1 // व्याख्या-अस्यैतस्य देवतार्चनस्याधिकारिणो योग्यतावंतो ज्ञेया झात. व्या विविधस्यापि द्रव्यजावन्नेदेन द्विप्रकारस्याप्यगारिणो गृहस्थाः. तथा प्रायो बाहुल्येन जावस्तवे | चैव जावार्चन एव, प्रायोग्रहणात्संयमावाधया गुणमपेक्ष्य कदाचिद् द्रव्यस्तवेऽपि साधूनां यतीनामधिकारिताऽधिकारित्वं योग्यत्वमित्यर्थः. नक्तं च-दबबन य चाव-बन य दबबन बहुगुणोत्ति बुधिसिया / अनिनणमश्वयणमिणं / जीवहियं जिणा बिति // 1 // जीवकायसंजमो। दवबए सो विरुनई कसिणो // तो कसिणसंजमविक / पुष्फाश्यं न श्चति // 2 // अकसिण- पवत्तयाणं / विरयाविरयाण एस खलु जुत्तो॥ संसारपयाणुकरणो / दवलए कूवदितो // 3 // इति श्लोकार्थः // 1 // अथ द्रव्यस्वरूपं तत्राधिकारिणस्तदुपदेशं च श्लोकेनाह // मूलम् ॥-विधाप्य विधिना श्राधः। सुंदरं जिनमंदिरं // तत्र बिंब प्रतिष्टाप्य / पूजयेत् प्रतिवासरं // 1 // व्याख्या-विधाप्य कारयित्वा विधिना शास्त्रोक्तविधानेन श्राधः श्रावकः सुंदरं | शोजनं जिनमंदिरं जिनगृहं, तत्र तस्मिन किंवं जिनप्रतिमा प्रतिष्टाप्य शास्त्रोक्तविधिना प्रतिष्टां का. | PP.AC.Gunratnasuri M.S.' Jun Gun Aaradhak Trust