________________ धर्मः / निः // पूजयित्वा विधानेन / श्रेणिकः श्रीजिनेश्वरं // 71 // जात्यकांचन निर्मित-यवानां साष्टः - कं शते / प्रत्यहं कारयित्वा च / अष्टमंगलहेतवे / / 72 // मंगलानि पुरो ह्यष्ट / विलेख्य विधि " पूर्वकं / / रोमांचार्चितसर्वागो / योगमुद्रापुरस्सरं / / 73 // देवेंादिस्तवैः सारैः / स्तुत्वा जुवनवां. धवं // अष्टस्वंगेषु चैकैकं / नमस्कारपुरस्सरं // 4 // पुष्पं दत्वा ततो चुक्ते / निर्मलीकृतदर्शनः // एवं च कुर्वतो राज्यं / तस्य गति वासराः // 5 // कुलकं // / तदहो धार्मिकाः स्तोका / शिष्टाचारपरा नराः // अन्यायकारिणो लोका / जुयांसो धर्मवर्जि ताः // 6 // सर्वदा सर्वकल्याण-कारके अवतारके // यतध्वं यो जना धर्मे / सामग्री दुर्खना | पुनः / / 77 // श्रीमदजयदेवाख्य-सूरिपादांतवासिनो // सूरिणा वर्धमानेन / धर्मरत्नकरंमके।। IT || धर्माधर्मकृताहाने / धर्माधर्मविवेचके // प्रस्तावे प्रथमे वृत्तिः / संक्षेपादेव चर्चिता / / // // उक्तो धर्माधर्माविति प्रथमाधिकारः // अथ द्वितीयो जिनपूजेति व्याख्यायते, अस्य चायमनिसंबंधः-प्रथमाधिकारे धर्माधर्मों सप्रपंचावन्निहिती, तत्र चाधर्म परित्यज्य धर्मे यत्नो वि. | धेय श्त्युक्तं, धर्मार्थिनां पुनर्देवतापूजनं प्रथममेवानुष्टानं, अतोऽत्राधिकारे पूजाविधिरुच्यते, श्य Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasur M.S.