________________ गुणेषु च // 67 // दोषा अपि गुणत्वेन / यैः प्रपन्ना नराधमैः / / दोषेभ्यश्च कदा तेषां / विनिवृत्तिनविष्यति // 70 // दर्शने परदोषाणां / लोकानां लोचनयं // सहस्रगुणतां याति / हा हा मत्सरजूंनितं // 71 // म्वदोषदर्शने हे तु / जात्यंध श्व चक्षुषी // ये तु धर्मपरालोका-स्ते स्वल्पा न तु भूरिशः // 12 // यो हि यत्कुरुते कार्य / तदेतत्तस्य सुंदरं // आत्मसंतुष्टमेवेदं / वि. चाररहितं जगत् // 13 // तेन राजन् मया प्रोक्त-मटपे पातककारिणः // स्वबुध्या धार्मिकाः सर्वे / वसंति नगरे तव // 14 // ततोऽसौ रंजितो राजा / श्रेणिको मगधाधिपः / / श्लाघां कुर्वन जगादेदं / प्रतीत्य श्रावको तकौ // 35 // अहो विवेकता वां च / अहो वां च सुजाषितं / / श्र. हो वा धर्मदाढर्यत्वं / न तन्मूल्यं जगत्त्रये / / 76 // विसर्जितो नरेंण / प्रियंकरशुभंकरौ // श्लाध्यमानौ च लोकेन / सादरं स्वगृहं गतौ // 9 // अहो अजय ते बुधिः / सर्वेषामुपरि स्थिता // नाम्नैव मंत्रिणः शेषा-स्त्वमाद्यो मंत्रदर्शिनां // 70 // अनयाय निजं दत्वा / देहस्यांशुकभू. षणं // विसर्जितसन्नो राजा / जगाम निजमंदिरं / / 77 // कृतस्नानो विशुधात्मा / संवीतशुचिशा टकः // शांतः कृतोत्तरासंगो / धर्मधीधर्ममूर्तिकः // 70 // मालतीजात्यपत्रादि-सांदपुष्पैः सुगंधिः P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust