________________ धर्मः | क्यते नैव / प्रतीहारशतैरपि // चक्रिणः कल्पपालाश्च / मत्स्यबंधाश्च खट्रिकाः // 16 // वेश्या वा र गुरिका गोना / ये चान्ये पापकारिणः // प्रतीहारेण ते प्रोक्ताः / किं युयमिह चागताः // 7 // मद्यमांसरसासक्ता / जीवघातपरायणाः / / अमिष्टाः कुकर्माणो / लोकनिंद्याश्च सर्वदा // 10 // त्रिनिर्विशेषकं // जगाद चक्री चक्रं नो / धर्मागं प्रथमं स्मृतं // विचारय प्रतीहार / कथ्यमानं व. चो मम // 27 // विजपाखंडिदीनांध-पंगुज्यस्तैलधारया // दत्तया किं न धर्मो न / इति सम्य ग्विन्नाव्यतां / / 30 // . तडागे खन्यमाने तु / लेष्ट्वाकर्षणसन्निभं // अर्थमात्रसमुचं वा / पुण्यं केन निवार्यते // 31 // सौवासिनी विजेन्यश्च / दक्षिणा या प्रदीयते // तलो धर्मसंतानः। किमस्माकं न जायते // // 35 // ततो वयं सुधर्मिष्टा / धर्मकर्मविपदणाः / / धर्मप्रासादयोग्याश्च / मुधा वारयते भवान् // // 33 / / अत्रांतरे समायाता / सुनंदवणिगंगजा // विटनोज्या महापापा / न वेश्या न कुलांग ना // 34 // जारघातितभर्तृका / निर्मर्यादा गतत्रपा // वर्जिता पितृवर्गेण / श्वशुरेणापि वर्जिता // 35 / / उद्घाटमस्तका लोकै-ईस्यमाना मुहुर्मुहुः // कुलंकुलमटती च / सा कुलटेति विश्रू. Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.Gunratnasun M.S.