________________ धर्मः / तोऽपि न लन्यते // 14 // तन्मंत्रिजणितं वाक्यं / राझोऽपि हृदि संस्थितं // केवलं वक्ति नो किंचि-दचयो मंत्रिणां वरः / / 15 / / अशृण्वन्निव तृष्णीक / आन्तेऽधोनमितेदाणः // नणितो भृता मंत्रि-न्नुत्तरं किं न दीयते // 16 // स प्राह न विजानेऽहं / देवोत्तरमुदीरितुं // अजानानस्य सर्वत्र / मौनं सर्वार्थसाधनं // 17 // यथैते तव जाति / मंत्रिणः कार्यनिश्चयं // तथाई न विजानामि / विजिन्ना मतयो नृणां // 17 // अहं तु ननु जानामि / प्रजूता धार्मिका जनाः।। वसति च खटपाः पापाः / कुरु तात परीक्षणं // 15 // स्वल्पशौचा अधर्मिष्टा / अरण्यानीनिवासिनः // अविचारा न शस्यते / नरा गरिका यथा // 20 // अपरीक्षितकारित्वं / मृतानां दे. हमंडनं / बधिरेण समं मंत्रो / जात्यंधमुखमंडनं // 1 // ततः परीक्षणाहेतोः / पुरमध्ये सिते. तरं // प्रासादद्दयमुत्तुंगं / कारयित्वा मनोहरं // 2 // परितः पटहेनाशु / श्रावयित्वाखिलं जनं // यथा जो जुभृता धर्म्यः / प्रासादः कारितो महान् // 23 // द्वितीयः पापनामा च / तत्र यः कोऽ. पि धार्मिकः // धर्म्य प्रासादमागत्य / स आरोहतु सत्वरं / / 24 / / पापो जनो द्वितीयं तु / प्रासा| दमुपगबतु // एतत् श्रुत्वा जनः सर्वो / धावितो धर्ममंदिरे // 25 // त्रिनिर्विशेषकं // निरोधुं श.| PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust