________________ धर्मः | दूतत्वं / दुरेऽपि वसतां सतां // 31 // धनचंडस्तथा प्रोक्तः / पितुरंकमुपागतः / / हर्षाश्रुपूरिताक्षे / तेनाचुंबि स मस्तके // 7 // नणितो वत्स किं तत्र / वाणिज्यं कुर्वता सता // अयमासा. | दितो लागो / मूलादष्टगुणो महान् // 13 // तेनापि कथितं सर्व / यत्कृतं यच्च चिंतितं // ला. भश्च पूज्यपादानां / पुण्यैरासादितो मया // 4 // निशम्य तस्य वाक्यानि / धनो मनसि रजि. तः॥ हर्षाश्रुपूरिते विन-चक्षुषी गलदश्रूणी // 55 // पुण्यानुबंधिपुण्येन / जन्म संजाव्यते तव // सुक्षेत्रमिव शस्यानां / त्वं पात्रं सर्वसंपदां // 6 // लन्यते ऋदसंख्यापि / गण्यते दीपसागराः / तव देहे गुणानां तु / पर्यंतोऽपि न लन्यते // 7 // त्वयैव पुत्री पुत्राहं / त्वयैव गुणवानहं।। त्वयैव श्लाध्यता नीत-स्त्वया जातो निराकुलः // 17 // मनांसि शिष्टलोकानां / कूपोदकसमान्यहो // निर्गुणैः स्तब्धकैः शून्य-गृह्यते न कदाचन // एए | जो लोकाः साक्षिणो यूयं / वि. संवादनिवारणे / कनिष्टेऽपि गुणाधारे / धनचंडेऽस्ति मे मनः // 100 // यत नक्तं-गुणा गौ. रखमायांति / महत्त्वेन न रूपतः // कलंकी न तथा पूज्यो। निष्कलंको यथा शशी // 1 // त. | तश्च सर्वलोकानां / पुरतो मंगलपूर्वकं / / गृहनारोऽश्रुणा सार्ध / मूर्ध्नि तस्य निवेशितः // 2 // P.P.AC. Gunrainasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust