________________ धर्मः | नां शीलशालिनां // अनुन्नतिकराण्येव / जायते गृहमेधिनां // 3 // नक्तं च-कार्य क्षुत्पनः | 'टीका वं कदन्नमशनं शीतोष्णयोः पात्रता / पारुष्यं च शिरोरुहेषु शयनं मह्यास्तले केवलं // यान्येवाव| नतिं वहति गृहिणां तान्युन्नति संयमे / दोषाश्चापि गुणीनवंति हि नृणां योग्ये पदे योजिताः // 30 // 4 // तदेष ज्येष्टपुत्रो मे / निर्भाग्यो गुरुतल्पगः // अयोग्यो गृहनारस्य / बाह्यकर्मकरोड. स्त्विति // 3 // मूलनीवीधनं मुक्त्वा / पादाग्रे प्रणतिं गतः // द्वितीयो जाणितः पित्रा / पुत्रेदं मामकं धनं // 4 // दूरं दूरतरं यांति / पुरुषा लाजवांग्या // समूलं ते समेतस्य / बढिश्वारो निरर्थकः // 5 // ज्येष्टवदनुज्येष्टोऽपि / कृतः शपथशापितः // तेनापि कथितं सर्वं / यत्कृतं यच्च चिंतितं // 6 // लोकाः शृणुत सर्वेऽपि / मिलिता मामकं वचः // एषोऽपि कर्मकार्येव / मंदिरे किंतु मध्यमः / / 77 // कनिष्टोऽपि संमायातो / मृत्यवर्गसमन्वितः // श्रादेशार्थी पुरोभूय / स्थि. तो विरचितांजलिः // 7 // मूलनीवीधनं सर्व / पादे मे मुंच दक्षिणे // वामे विवर्धित मुक्त्वा / ममोत्संगे निवेश्यतां // 7 // त्वन्मुखामृतपानस्य / चिरकालमुत्कंठितः। अद्याह मुदितो जातो || जात त्वय्यवलोकिते // ए०॥क मेघा बर्हिणः कुत्र / क चंद्रः क च सागरः // गुणाः कुर्वति / P.P.AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust