________________ धर्मः किमुक्तं चिंतितं किं वा / किं वा कर्म त्वया कृतं // तेनापि च यथा वृत्तं / तया सर्व निः | - वेदितं // 12 // युग्मं // तत श्रुत्वा कुपितः श्रेष्टी। किंचित्कंपितकंधरः // नवाच मिलितं लोकं / सर्व सावेशमानसः // 73 // जो पश्यत जना यूयं / ज्येष्टपुत्रस्य चेष्टितं // व्यवसायं पितृभक्तिं च / शरीरस्य स्थिति तथा // 14 // एवं विधेन वेषेण / साधुरेव प्रशस्यते // पूज्यते च जनैः सर्वैः / स्तूयते स्तुतिभिस्तथा // 15 // निर्धनः श्लाध्यते साधु-रहो मुनिरकिंचनः॥ मलिनो मान्य. तामेति / मलधारी महामुनिः / / 76 // उर्बलः पूज्यते लोके / घो कष्टं तप्यते तपः // दुष्टदुर्मुखवाक्यानि / सहन लोकेन शस्यते // 99 / / दमावानेष वंद्योऽयं / धन्यो धर्मशिरोमणिः // क. दन्ननोजी लोकेन / गण्यते निःस्पृहो मुनिः // 77 / / मिशायी मुनिर्लोके / कष्टकारराति नण्यते // रोमपादनखादीनां / वर्धनं गुणवर्धनं // 79 // परुषत्वमचर्या च / केशानां श्लाध्यते जने // अस्नानं च प्रशस्यति / नैव स्नांति दमे रताः // 70 // स्नानमुहर्तनान्यंगे। नखकेशादिसस्त्रियां // गंध माव्यं च तांबूलं / प्रदीपं तु मुनिस्त्यजेत् // 71 // स्मृतिरपि-ब्रह्मचर्यस्थितो नैव-मनमद्यादि निंदितं // दंतधावनगीतादि / ब्रह्मचारी विवर्जयेत् // 72 // एतान्युन्नतिकारीणि / साधू. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aarawak Trust