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________________ धर्म- दुराचारो / लोनसागरसंझितः // 16 // परद्रव्यापहारेबः / सदा संक्लिष्टमानसः // तत्रास्ते चर्मका- | रोऽपि / मायामय इति स्मृतः // 17 // तथान्यो लोकविख्यातो। मान्यो विप्रगुणान्वितः // आ. "दित्यमंदिरे तत्र / हिजो विगतलोचनः // 10 // अविद्यमाननेत्रोऽपि / त्रिलोचन इति स्मृतः // होराबलेन लोकानां / दत्तादेशो विचक्षणः // 15 // अथ बोहिस्थमायातं / रिजांडसमाकुलं / / | श्रुत्वानेकजनाकीर्ण / ताराचंडं च तत्पलं // 20 // लोजनंदिर्गतो रात्रौ / तदंते वंचनेबया / / कृ. तोचितोपचारश्च / निषामो दर्शितासने // 21 // कुशलं ते शरीरस्य / पृष्टोऽसौ लोजनंदिना // पूर्वानाष्यमिदं चैव / सुलन सज्जने जने // 22 // किं जांमं वा कियदापि / पृडतो मम कथ्यतां // तेनापि कथितं सर्व / प्रायः प्रांजलचेतसा // 23 // शिरो विधूय तेनापि / सखेदमिव ज. ल्पितं // प्रयास एव ते जातः / कुन्नांडानयनादिह // 24 // यस्मादेतस्य नास्त्यत्र / ग्राहकः को. ऽपि सर्वथा // परं तथापि गृह्णामि / कीर्तिभंगायादहं // 25 // दास्यामि प्रस्थकं त्वेकं / तुभ्यं वांबितवस्तुनः // प्रतिपन्नमनेनापि / सत्यंकारश्च ढौकितः // 26 // साक्षिणो विहिता लोका / जां| मं दृष्ट्याहतं कृतं / आगतः स्वगृहे श्रेष्टी / प्रमोदभरनिनरः // 27 // अहो मे धन्यता येन / / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036436
Book TitleDharmratna Karanda Tika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhamansuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1915
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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