________________ 366 धर्म // मूलम् // श्राशापिशाचिका नित्यं / देहस्था दुःखदायिनी // संतोषवरमंत्रेण / स सुखी / मी येन नाशिता // 1 // व्याख्या-बाशापिशाचिका वांगव्यंतरी नित्यं सर्वदा देहस्था शरीरस्था दुःखदायिन्यशर्मप्रदा संतोषवरमंत्रेण निःस्पृहतापरममंत्रेणासावनिर्दिष्टनामा सुखी शर्मवान् येन के. नचिन्नाशिता देहाद् दूरीकृता. // 1 // असंतुष्टो हि जंतुनवभ्रमणे ःखितो भवतीति दर्शयन्नाह|... // मूलम् ॥–चिंताचक्रसमारूढो / योगदंडसमाहतः / कर्माष्टककुलालेन / -ब्राम्यते घश्व नरः // 1 // व्याख्या चिंताचक्रसमारूढो विकल्पमालारथांगारूढो योगदंसमाहतो मनोवाकाय. लकुटाहतः कर्माष्टककुलालेन झानावरणीयादिकाष्टककुंगकारेण भ्राम्यते ब्रमणशीलः क्रियते घ. टवत्कुंजवन्नरो मानवोऽसंतुष्ट इति गम्यते. // 1 // ननु वांछासनावेऽपि जनः सुखी नविष्यति, को. व विरोधः? इत्याशंकापनोदाय श्लोकद्वयमाह.... * // मूलम् ।।-श्रातपबाययोर्यह-सहावस्थानलदंणः // विरोधस्तहदवापि / विज्ञेयः सुख वांग्योः // 1 // वांछा चेन्न सुखं जंतो-स्तदिना शर्म संततं // न भूतानि न नावीन / सुखानि सह वांग्या // 2 // व्याख्या-यातपस्तापश्गयां चातपानावनाविनी, तयोर्यद्यथा सढवस्थानल. Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.Gunratnasuri M.S.