SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 366
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . धर्म / मेकाग्रं धर्मचिंतने // 44 // ततःप्रभृति भो भद्र / संयमेंद्रियपंचकं // जयाजयफलं तस्य / ध्यानः | स्थश्चिंतयेद्यथा // 45 // दिवसरजनीसारैः सारित पदगेहं / समयफलकमेतन्मंडितं नृतधान्यां / | श्ह हि जयति कश्चिन्मोदमदौर्विधे यै-रधिगतमपि चान्ये विप्तैरियंति // 46 // तदेकाग्रम| नोध्याने / पंचेंज्यिविनिग्रहे // षुकारो गुरुर्जातो / ममैवमवधारय // 4 // तथात्रैव पुरे दृष्टा / कंडयंती कुमारिका // तंमुलान् वलयाराव-खेदितश्रवणदया // 4 // ततः सामंचदेकैकं / व लयं शब्दशांतये // तथापि तत्कृतारावो / नोपशांतो मनागपि / / 4 // ततो हे त्रीणि चत्वारि / न च शाम्यति तध्वनिः // ततो विमुच्य शेषाणि / तदैकैकं धृतं तया // 50 // शांतः शब्दस्ततस्तस्य / जाता चित्तस्य निर्वृतिः // दृष्ट्वेदं सुखदा तेन / रुचितैकाकिता मम // 51 // ततोऽहं बंधुसंबंधि-मित्रवर्ग विमुच्य च / विचरामि सुखेनैव / सदैकाकी निराकुलः // 55 // तदेवमेककत्वे मे / गुरुर्जाता कुमारिका // तदेवं मम जो नद्र / गुरवः षट प्रजझिरे // 53 // वस्त्य स्तु सांप्रतं तुन्यं / स्वस्थानं समलंकुरु / / इत्युक्त्वा सोऽपि संप्राप / स्थानं स्वेष्टं तदा हुतं // 14 // / सांप्रतमाशापिशाचिकाया जयोपायं, तज्जये च सुखमुपदर्शयन्नाह P.P. Ac Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036436
Book TitleDharmratna Karanda Tika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhamansuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1915
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy