________________ 363) धर्मः समो बंधुन तो न भविष्यति // 21 // प्रतिपद्याध तदाक्यं / धर्मे दत्वा निज धनं // ततो मया गृहीतं गोः / सुसंतोषव्रतं परं // 12 // स्थितस्तत्र सुसंतुष्टः / कतिचिदिवसानहं / / एवं जो | मम संजाता / संतोषे पिंगला गुरुः // 3 // अन्यदा च ततः स्थाना-बता बाहिरी दितः // गृहीतमांसपेशीकः / कुरराख्यो विहंगमः // 24 // हन्यमानस्तरां लुब्धैः / पदिन्निमसिनदिभिः॥ | चंडतुंडाभिघातेन / सर्वैरपि समंततः // 25 // कथंचिदैवयोगेन / मांसपेशी तदाननात् // पतिता | नृतले कापि / गृहीता काकपदिणा // 26 / / ततस्तं कुररं मुक्त्वा / सर्वे ते वायसंप्रति // धाविताः स पुनर्जातः / कुररो नितरां सुखी // 27 // ततस्तत्कौतुकं दृष्ट्वा / मया चित्ते विचिंतितं // सामि| षस्य सदा दुःखं / सौख्यमामिषवर्जनात् / / 20 // ततो मया परित्यक्तः / समग्रोऽपि परिग्रहः / / ते. न तस्य परित्यागे / कुररोऽपि गुरुर्मम // 27 // ततोऽये गबता दृष्टः / सर्पः सर्वनयंकरः / / ऋमिस्त्रीवेणिसंकाशः / परवेश्मकृताश्रयः // 30 // ततोऽचिंति मया चित्ते / सुंदरं वतिनां व्रतं // गृ. हारंगो हि पापाय / मुःखाय च शरीरिणां // 31 // ततःप्रभृति जातोऽह-मपराश्रमसेवकः // त. | तः परकृतावासे / सो मे गुरुतां गतः // 3 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust