________________ धर्मः // // अहो सुखं स्वपित्येषा / कृतकृत्या श्वाधिकं // विचिंत्यैवं दणं चित्ते / श्लोकोऽयं पठिलो। मया // 10 // अाशा हि परमं दुःखं / निराशा परमं सुखं // पाशां निराशतां नीत्वा / सुखं ख. पिति पिंगला // 11 // प्रजाते पुनरायातः / पृष्टा सा पिंगला मया // किं कारणं विशालादि / 365 | निशीथे तव मंदिरं // 12 // दत्तार्गलं निःशब्दं च / मया सुनु विलोकितं / / यदि कथ्यं तदा शो. चूं। मम साधय कारणं // 13 / / युग्मं // तयोक्तं साधयाम्येषा / निशामय निराकुलः // साने कथितं कार्य / गुणायैव प्रजायते // 14 // एकदा जागराद्धाढं / संजाता मे विसूचिका // जाताई मरणावस्था / कष्टंकष्टेन जीविता // 11 // ततस्तदा मयाकारि / प्रतिज्ञेयं सुखावहा // श्राद्ययाम यादूर्ध्व / सुप्तव्यं निश्चितं मया // 16 // श्राद्यमेवं च यामिन्या / जागर्मि प्रहरदयं // ततः सं. तुष्टचित्ताहं / नित्यं स्वपिमि सुस्थिता / / 17 // असंतोषो हि दुःखाय / संतोषः सुखकारणं // थ संतोषोपतप्तानां / संतोषो नंदनं वनं // 10 // असंतुष्टस्य यदुःखं / संतुष्टस्य च यत्सुखं // अन. योरंतरं ज्ञेयं / भानुखद्योतयोरिव // 15 // श्राद्ययामदये जातं / यत्तिं तेन में धृतिः // एवं नि| श्चयमाधाय / तिष्टामि सुखिता सदा // 20 // तवापि संगतश्चायं / संतोषः सर्ववस्तुषु / / सुसंतोष | Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.. .