________________ धर्मः | रुतरगुणग्रामांनोजस्फुटोज्ज्वलचंद्रिका // विपुलविलसबकावलीवितानकुगरिका / जवरपिठरी दुः पुरेयं करोति विमंबनां // 10 // निर्गय सरसोतीरे / जलस्नेहं कुनोजनं // चुक्त्वा नीत्वा दिनं | तत्र / मदिकाशतसंकुलः // 51 // नक्तं सुष्वाप शून्येषु / देवगेहेषु :स्थितः // वर्षावधि नय. त्येष / जीवन्मृतकसन्निनः // 5 // धनावासोऽपि कौबेरीं / गत्वैकत्र पुरे स्थितः। सोऽपि संचिं. तयामास / यथा ज्येष्टेन चिंतितं / / 53 // समस्ति कारणं किंचि-त्तातो वेत्ति न चापरः // त. तो यामदयं याव-व्यवहारो मम संगतः // 14 // उपार्जितस्य चार्थस्य / नदणं मूलरदणं // सोऽपि शास्त्रे वणिग्दृष्टो / मूलं यस्य न नश्यति // 55 // * एवं च कुर्वतस्तस्य / प्रत्यहं यांति वामराः // धनचंद्रो वारुणीं गत्वा / स्थितश्चैकत्र पत्तने // // 56 // चिंतितं सुधिया तेन / स्वस्थानेऽपि न सुंदरं // व्यसनं शिष्टलोकानां / विदेशेषु विशे. षतः॥ 27 // असारेऽप्यत्र संसारे / पितरौ सारतां गतौ // यचाहितौ तदा कोऽन्यो / हितो हंत नविष्यति // 50 // व्यसनं सकलं त्यक्त्वा / ग्रासाबादनतत्परः // अर्थचिंतापरः शेते / यामबंद | यथा मुनिः // 55 // शेषकालं गतालस्यो / व्यवहारं चकार सः // जातश्चाष्टगुणो लान-स्त. PP.AC.Gunratnasuri M.S. Nun Gun Aaradhak Trust