________________ धर्मः श्रुत्वेदं सूरिसदाक्यं / नृपतिर्मूर्जितः दणं // सस्मार पूर्वजां जाति / शुननावानुभावतः / / // ए // ततः सूरिमुवाचैवं / संवेगोधुरया गिरा // नदंताहं निजे राज्ये / सुस्थं कृत्वा त्वदंतिके // एए // सर्वक्लेशहरां दीदां / गृहीष्यामि मुनीश्वर // एवमुक्त्वा गतो राजा / स्वगेहे सपरिबदः // 200 // युग्मं // ततो राज्ये सुसेनाख्यं / निजपुत्रं न्यवेशयत् // कृत्वान्यदपि यत्कृत्यं / दत्वा दानं यथेप्सितं // 1 // कारयित्वा महापूजां / सर्वेषु जिनवेश्मसु // वस्त्रपात्रादिनिः सम्य-का तिलान्य मुनीन्नृपः // 2 // सूरिणामंतिके तत्र / गत्वा संविनमानसः // जग्राह विधिना दीदा। सर्वकर्मविमोचिनीं // 3 // त्रिनिर्विशेषकं // ततो गीतार्थसत्साधु-समीपे शुनजावतः // शिदि ता हिविधा शिदा / नरचंद्रसुसाधुना // 4 // पालितः सुचिरं शुधः / संयमस्तपसा सह // साव. शेषीकृतं कर्म / संसारश्च लघूकृतः // 5 // पर्यते विधिना मृत्वा / संजातोऽनुत्तरे सुरः / ततश्च्यु त्वा विदेहेऽसौ / व्रतं सात्वा शिवं गतः // 6 // चरितमिदमुदार सर्वलोकैकसारं / नरपतिनरचंडस्यातं. भव्यलोकाः / त्रिभुवनजनतानां दत्तमोदं निशम्य / कुरुत निजकशक्त्या सर्वलोकोप| कारं / / 9. // इति श्रीनरचंडस्य कथानक परिसमाप्तं // Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.Gunratnasuri M.S.