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________________ धर्म जपुरानिधे // श्रेष्टिनश्चंदनाख्यस्य / पुत्रः सुंदरनामकः // 7 // क्रमेण यौवनं प्राप्तः / कामिनी जनमोहनं // विशालवंशजां कन्यां / वित्या परिणीतवान् // 7 // जुक्ता चोगास्तया सार्धं / जाता योग्याः सुता मम // संपालितः सुखेनैव / चिरं कालं गृहाश्रमः // 7 // यायाताः सूर यस्तत्र / श्रुतसागरनामकाः॥ धर्म श्रुत्वा गृहीता च / प्रव्रज्येयं तदंतिके // 50 // अधीतो रिसिधांतः / सुष्टु तप्तं तपश्चिरं / / संजातमवधिज्ञानं / लब्धिश्चाकाशगामिनी // 1 // दृष्टश्च झा. नसदुदृष्ट्या / झातो हस्तितया नवान् / समायातश्च तेनाहं / त्वत्प्रतिबोधहेतवे // 7 // तदहो सांप्रतं हस्तिन् / कोपं मुंचस्व सर्वथा // प्रतिपद्यस्व सधर्म / तूर्ण स्वहितमाचर // 73 // श्रुत्वेदं स गजस्तत्र / जातो जातिस्मरः दणात् // ततस्तस्य मुनेः पार्श्वे / श्रावकत्वं प्रपन्नवान // 4 // ततोऽसौ सुमुनिः सम्यग् / बोधयित्वा गजं तकं // जगाम निजके स्थाने / कालेन च शिवालये // 55 // गजोऽपि श्रावकं धर्म / पालयित्वा चिरं ततः // पर्यतेऽनशनं कृत्वा / मृत्वा सौधर्मनामनि // 16 // देवलोके सुरो जातो / महातेजा महर्डिकः / ततश्श्युत्वा भवानत्र / नरचंद्रो नृपो. | ऽजनि / / ए || युग्मं / / . . Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
SR No.036436
Book TitleDharmratna Karanda Tika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhamansuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1915
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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