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________________ धर्मः ! गालोकितो मुनिः // 15 // ततस्तद्दर्शनादेव / कोपावेशं विमुक्तवान् // स्तंजित श्व सन्मंत्रैः / का स्थितस्तस्याग्रतो मुनेः // 76 / / ततस्त्वं साधुना प्रोक्तो / गंजीरोदारया गिरा // अहो पूर्वनवः किं ते / विस्मृतो वरकुंजर // 9 // वाणिज्यं वा त्वयाकारि / मया सार्ध तदा गज // अथ त्वं धावितो भद्र / दूरं रुष्टो ममोपरि // 9 // यदि ते विस्मृतं सर्व / तदाकर्णय कथ्यते // त्वं चाहं च वरे दीपे / धातकीखमनामनि // 70 // पुरे राजपुरे हस्तिन् / दावप्यावां वयस्यको // बनवाव . वणिक्पुत्रौ / स्नेहवंतौ परस्परं / / 70 // युग्मं // कृतवंतौ सहैवावां / वाणिज्यं द्रविणार्थिनौ / वं. चितोऽहं त्वया द्रव्य-लाजेनानेकधा तदा // 1 // तेन त्वं वंचनादोषा-न्मृत्वा जातोऽसि कुं. जरः / / कृतं हि कुत्सितं कर्म / नामोघं जायते यतः // 2 // येन ते परमाप्रीति-स्तदाजवन्ममोपरि / मामालोक्य तव क्रोधः / प्रशांतस्तेन हेतुना / / 73 // सहसा येन दृष्टेन / कोपावेशः प्रशाम्यति / / वर्धते प्रीतिरत्यर्थ / पूर्व बंधुः स तस्य भोः // 4 // सहसा येन दृष्टेन / कोपावे. शः प्रवर्धते // हीयते प्रीतिरत्यर्थ / पूर्वशत्रुः स तस्य हि // 5 // अहं पुनस्तंदाच्वं / सदा दा. | नपरायणः // किंचित्तनुकषायत्वा-प्रांजलिः सर्वकर्मसु // 6 // ततो मृत्वा समुत्पन्नः / पुरे रा. Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.GunratnasuriM.S.
SR No.036436
Book TitleDharmratna Karanda Tika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhamansuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1915
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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