________________ धर्मः। जगत्त्रये // 7 // म. अन्यदा वर्गनाथेन / स्वर्गे स्वर्गीकसां पुरः // सदौदार्यगुणो राज्ञो / वारंवार प्रशंसितः // // 7 // यथा जो जो सुराः श्रीमा-नरचंद्रो नरेश्वरः // सर्वदा सर्वलोकाय / ददात्येव हि वांजि. 337 तं // 10 // वाक्यमेतत्सुरेंद्रस्य / दावश्रद्दधतौ सुरौ // परीदार्थ समायातौ / राझो जोगपुरं पुरं / / // 11 // तत्रैकः शक्ररूपेण / जगाम नृपसन्निधौ // जगादैवं स्फुटैवाक्यै नराधोशं कृतांजलिः / / / // 15 // अहं हि सूरराजस्य / सूरसेनानिधः सुतः / / श्रीमचंद्रपुरस्वामी / सुप्रतीतो रिपुस्तव // 13 // तावकी नैर्मवादम-निर्जितो बुषिता पुरी // सर्व मम हृतं राज्यं / पुरमंतःपुरं तथा // 14 // वि. योजितः स्वबंधुन्यो / शितो राज्यसंपदः / / एकाक्येव चिरं ब्रांतो / महीपीठे सुदुःखितः // 15 // भ्राम्यता च मयाश्रावि / कीर्तिर्दानोद्भवा तव // ततो मया व्यचिंत्येव / किमन्यैस्तुबकैजनैः // 16 // सेवितैर्याचितैर्वापि / कृपणैर्डव्यलोबुपैः // याचिता अपि ते दयः / शतं पंचशतानि वा // 17 // युग्मं // तदौदार्यगुणोपेतं / नरचंद्रनरेश्वरं // दातारमीप्सितार्थस्य / शत्रुमप्याश्रयाम्यहं / / 10 // एवं | विचिंत्य राजेंद्र / समायातस्त्वदंतिके / न कार्यः प्रार्थनानंगः / किंचित्तुबं प्रयच मे // 17 / / . P.P.AC: Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust