________________ धर्म- श्रुत्वेदं तेऽपि सानंदा-स्तस्थुर्विलसतो धनं // पूजिता राजलोकेन / नृपतेरपि वल्लनाः // 7 // / का अन्यदा नणिता राज्ञा / रिडव्यार्थिना सता // यथा भो मम वाक्येन / स्वर्ण सिधिविधीयतां॥ | // 7 // युष्माकं सर्वमेवात्र / साहाय्यं प्रकरोम्यहं // क्रियतां सर्वसामग्री / पात्यतां रि कांचनं 320 // // ततस्तेऽपि विधायाशु | सामग्रीमखिलामपि // स्वर्णसिधि प्रयत्नेन / प्रवृत्ताः कर्तुमंजसा // 100 // राज्ञः पुण्यानुनावेन / पातितं त्रुरि कांचनं // तुष्टो राजा ततश्चैत-चिंतयामास मान से // 1 // वांबितार्थप्रदानेन / विधाय निःऋणां महीं / करोमि सुस्थितं लोकं / सांप्रतं सर्वमेव हि // 2 // विचिंत्यैवं ततो राजा / समाहृय स्वमंत्रिणः // बगाण जाणितिप्रौढः / प्रौढवाक्यैरिदं मुदा // 3 // अहोऽहो मंत्रिणः सर्व / समाहूय जनं ततः // पृच्च्यतां येन यावच्च / दातव्यं वि. द्यते धनं // 4 // तत्तावद्दीयतां तस्मै / क्रियतां निःऋणां महीं // ततस्तूर्ण तथा चक्रे / मंत्रिजी राजशासन // 5 // सर्वेषु चैव देशेषु / सर्वग्रामपुरादिषु // दत्तं यथेप्सितं द्रव्यं / सर्वलोकाय - जुजा // 6 // सर्वपाखंमिलोकानां / सर्वदीनादिदेहिनां // चकारोपकृति राजा / वांछातीतं धनं द. | दन् / / 7 // एवं च कुर्वतो राझो / लोकं सर्वत्र सुस्थितं // गतः कालो बहुर्जाता / कीर्तिः शुत्रा P.P.AC Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust