________________ धर्मः चावोदारया गिरा // युष्मदीयमिदं स्वर्ण / न ममास्ति प्रयोजनं // 45 // श्रुत्वेदं विस्मिताः सर्वे / चिंतां चक्रुः स्वचेतसिः॥ महीनाथसुतः कोऽपि / परोपकृतिकारकः // 76 // लात्वा स्वर्ण खके | स्थाने / ततः सर्वेऽपि ते गताः // कुमारोऽपि महीं ब्राम्मन् / पुरे भोगपुरे गतः // 7 // दृष्ट्वा 337 तत्र वरोद्यानं / नानावृतासमाकुलं // विश्रामहेतवे तत्र / प्रविष्टो हृष्टमानसः // 7 // उद्यानदी. र्घिकानीरे / स्नात्वा पीत्वा च तज्जलं // अशोकवरवृदस्य / सबायायां स सुप्तवान / / नए // इत. श्चापुत्रको राजा / मृतस्तत्र महापुरे // ततश्च पंच दिव्यानि / मंत्रिनिरनिषेचिरे // 50 // ततस्तानि चिरं ब्रांत्वा / तत्र सर्वत्र पत्तने // निर्गत्य काननस्थस्य / कुमारस्यांतिकं ययुः // 1 // ततो राज्याभिषेकाणा-भिषिक्तः कुमरस्तकैः // हस्तिस्कंधसमारूढो / महा पुरमाविशत // 2 // जातो राजा महाकोशः / प्रचंमश्चमशासनः // ख्यातकीर्तिः प्रजानंदः / साधिताशेषतलः // 73 // अन्यदा ये पुरा दृष्टा / धातुर्वादकमानवाः // पेन ते समागत्य / नत्वा जूपं निषेदिरे / / ए४॥ ततः सन्मानिता राझा / तांबूलादिप्रदानतः // पृष्ट्वा च कुशलोदंतं / नोजिता निजमंदिरे गए। | ततो दत्तं धनं ऋरि / प्रासादाश्च मनोहराः॥ उक्ताश्च मत्समीपे जो। संतिष्टत निराकुलाः / / 6 / / Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.GunratnasuriM.S.