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________________ धर्म जायते तोषो / विलासैनिवर्जितैः // 51 // परोपकारो माध्यस्थ्यं / दाक्षिण्यं दानशीलता // सका नामुदारचित्तानां / यतोऽमी सहजा गुणाः // 5 // ततो राजा बजाणैवं / रंजितस्तशुणैरलं // अस्ति वित्तं तवायत्तं / कुरु वत्स समीहितं // 53 // आदिदेश ततो राजा। जांडागारिकमंजसा 334 | // दातव्यं गोस्त्वया सर्व / कुमारो यत्समीहते // 14 // एवं सर्व समादिश्य / राजा स्वार्थमशिश्रियत् // ततः कुमारवाक्येन / पुर्यामुद्घोषणे कृते // 55 // समायाता जनाः सर्वे / युवानः सविशेषतः // कुमारशासनात्तुष्टा / मधुमासदिदृदावः // 16 // युग्मं // कुमारस्तानथ प्रेक्ष्य / चिंत. यामास मानसे // आत्मतुल्यानिमान कुर्वे / सहस्त्रादिप्रदानतः // 57 // यौवनं जीवितं वित्तं / व्यापारो रूपमेव वा // तदेव शस्यते सनि-रुपकाराय देहिनां // 27 // ततः समानतांबूलं / तुल्याचरणषणं / समानवस्त्रसत्पुष्पं / तुल्ययानादिवाहनं // 27 // तुल्यकर्पूरसन्मिश्र-श्रीखं. डादिविलेपनं // कारयित्वा जनं सर्व / कुमारो हृष्टमानसः // 60 // विहितस्फारशृंगारः / पुरमध्यादिनिर्ययौ // स्थाने स्थाने इमाः श्रव्याः / शृण्वन् वाचो जिनोदिताः // 61 // त्रिनिर्विशेषकं | // धन्योऽयं पुण्यवानेष / श्लाघ्यं जन्मास्य गण्यते // येनेप्सितार्थदानेन / सर्वोऽयं तोषितो जनः PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036436
Book TitleDharmratna Karanda Tika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhamansuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1915
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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