________________ धर्म नरचंद्रो महासत्वो / राजसूनुः सुमानसः // पालोक्य तं पुरीलोकं / सारशृंगारशालिनं // / // // स्फारचित्ततया स्पृष्ट–श्चितां चक्रे विशालधीः // अस्मिन्नसारसंसारे / किं विलासैर्मनी. "षिणां // 30 // स्तोकावस्थैर्विशेषेण / वसंतोत्सवसंभवैः // बालक्रीमागृहप्रायै-विद्वज्जनजुगुप्सि 332/ तैः // 31 // त्रिनिर्विशेषकं // तेऽपि वित्तेन लोकानां / यसा स्युः सतामलं // काकमांसमिवो बिष्टं / वर्जनीया विशेषतः // 32 // तथाहि-काकमांसं तऽबिष्टं / तुबमत्यंत लं // नदिते. नापि किं तेन / तृप्तिर्येन न जायते // 33 // एवं तुबेष्वसारेषु / यदिलासेषु रज्यते // जनस्तत्राइता हेतु-रुतात्मन्नरणं तथा // 34 // शुजचित्तः समालोच्य / चेतसा रहसि स्थितः // क. लान्यासपरः शांतः / समास्तेऽसौ निराकुलः // 35 // महाराजोऽथ पप्रब / नरसिंहो जनं निजं // किं नो नरचंडाद्या / लोकाः सर्वेऽपि मामकाः / / 36 / / संजातेऽथ मनोमोदे / माधुमासेऽतिशा लिनि // क्रीमति वा न वेत्यत्र / सत्यमेव निगद्यतां // 37 / / युग्मं // ततो जनो जगादैनं / म. होनाथं कृतांजलिः // तव पुत्रं विना नाथ / शेषाः क्रीमति मानवाः // 30 // तवचनं समाकर्य / / शंकितो निजमानसे // जबाय सहसा स्नेहा-कुमारांतिकमागतः / / 35 // कुमारोऽपि समुदाय | Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.Gunratnasuri M.S.