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________________ धर्म: रणेनैव विनिर्जितः // सत्वावर्जितया यस्तु / वृतो तोषाऊयश्रिया // 6 // द्वितीयाचंद्रलेखेव / ज· / . नानंदविधायिनी // यासीस्पियतमा तस्य / चंद्रलेखेति विश्रुता // 7 // मुंजानस्य तया सार्ध / "| पंचापि विषयानलं // कतिचिहासरा जग्मु-धर्मार्थावपि सेवतः // // अथ पुत्रः समुत्पन्नः / सबदाणविराजितः / सौम्यो जनमनोमोद-दायी चंद्रसमाननः // // नरचंद्रानिधो रक्त| कोमलकरपल्लवः // वर्धमानः शरीरेण / संजातः सकलोचितः // 10 / / युग्मं / स्वधिया स्वटपका लेन / गृहीताः सकलाः कलाः // यौवनं च समारूढो / लोकलोचनशोजनं // 11 // उदग्रयौवनस्थोऽपि / कलान्यासपरायणः॥ कामबाणव्यथातीतो। निर्वाहयति वासरान // 15 // अन्यदा चिंतयामास / नरचंद्रः स्वमानसे // परोपकारिणामेव / सफलं जन्म मे मतिः // 13 // कर्तव्योs| सौ सदा सद्भिर्जीवितेनापि सत्वरं // जायते जंतवो येन / सुखिनो जगतीतले // 14 // नपकारपराः संतो / दुर्जनास्त्वपकारिणः // एतदेव स्फुटं लिंगं / तयोरिह निगद्यते // 15 // यासा छ मानुषं जन्म / सदा कार्यों मनीषिणा // उपकारः परो नित्य-मन्यथा जन्म हारितं // 16 // .| उपकारोऽपि विज्ञेयो / निराशंसेन चेतसा // विधीयते विशालेन / यः सदा शुब्बुधिना // 17 // Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
SR No.036436
Book TitleDharmratna Karanda Tika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhamansuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1915
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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