________________ धर्मः | गमे विपदागमे. // 1 // तथा कार्यशतेऽपि प्रयोजनशतेऽप्यसंमूढा अविबुप्तधियो गूढमंत्रा अनः | निशातपर्यालोचा दिवानिशं रात्रिंदिवं परार्थमेव परप्रयोजनमेव कुर्वति विदधति प्राणैरुब्वासादि भिर्दशप्रकारैः, धनैर्वितैः, अपिशब्दः सतां परोपकरणैकचित्ततां सूचयति, यतः किं चंडेण महो. 37 दधेरुपकृतं दूरेऽपि संतिष्टता / वृधौ येन विवर्धते व्रजति च दाणे दयं सागरः // 'श्रा ज्ञातं पर कार्यनिश्चितधियां कोऽपि खन्नावः सतां / स्वैरंगैरपि येन यांति तनुतां दृष्ट्वा परं दुःखितं // 1 // // मूलम् ।।-कैः कैर्वा न प्रशस्यते / परोपकृतिकारिणः // कुर्वतो जनतानंदं / नरचंद्रकु मारवत // 1 // व्याख्या-श्लोकोऽयं स्पष्टः, नरचंद्रकुमारदृष्टांतश्वायं, तद्यथा-समस्ति जारते वर्षे / रामाजनविराजिता // सत्पुरुषसमाकीर्णा / विस्तीर्णत्रिकचत्वरा // 1 // श्रीवासुपूज्यसर्वज्ञ-स. कल्याणसुरागमा // मंदिरैमैदरोदारै-मैमिता च समंततः // 2 // लद्दामकाननोद्यानैः / सदा मं. डितऋतला // सौराज्येन सुखावासा / चंपानाममहापुरी // 3 // त्रिनिर्विशेषकं // केशेषु बंधनं य. स्यां / दमखत्रेषु श्रूयते // वाहनं वाजिनामेव / जने नैव विलोक्यते // 4 // पालयति महीपा| ल-स्तां पुरी पुरुषोत्तमः // नरसिंहानिधो वीरः / सदा नीतिपरायणः // 5 // दुर्वास्वैविारेण / / Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.