________________ धर्मः ! मश्नुते // 16 // ततः कृत्वा स्वपुत्राणां / योग्यायोग्यपरीक्षणं // पात्रते गृहमारं / निवेश्याहं मी निराकुलः // 17 // करोमि धर्मकर्माणि / सृतं मे गृहचिंतया // एवं विनिश्चयं कृत्वा / जणिता तेन गेदिनी // 10 // युग्मं // कुसूत्रं ते गृहं गद्रे / वद किं क्रियतेऽधुना // आर्यपुत्रो विजानाति / कार्याकार्यविवेचनं // // 15 // याज्ञाकारी जनस्तेऽयं / ततः श्रेष्टी बनाषतां // महाकटकृतबायं / सर्वतो रचितासनं // // 20 // महांतं महतां योग्यं / रम्यं रंजितसङानं // सर्वतोऽपि परिदिप्तं / मंडपं रचयाम्यहं // 21 // 'युग्मं // नवत्यपि वराहारं / निष्पादयतु सत्वरं / येनैष नोज्यते लोको / मंझपे चोपवेश्यते // // // तथेति प्रतिपद्यासौ / पाकं कर्तुं समुद्यता // निष्पन्नस्तत्दाणादेव / पाकः पुण्यजनोचितः // 23 // वैवाहिकाः स्वगोत्राश्च / ये चान्ये राजपूजिताः // श्रेष्टिनामंत्रिताः सर्वे / जोजनार्थ निजे गृहे // 2 // यायाता नोजिताश्चैव / मंझपे चोपवेशिताः // तांबूलादिप्रदानेन / कृताः स. न्मानभाजनं // 25 // स्वयं मंडपमध्यस्थो / निषलो वरविष्टरे / मंडपागतलोकेन / सर्वतः परिवारितः // 26 // सहस्रमानमेकैकं / तभृत्यैर्वासनत्रयं // श्रेष्टिवाक्यात समानीय / मुक्तं तत्पादः | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust