SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 320
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 315 धर्मः / क्तिस्म विस्मितः // 25 // सत्यमेव ममाप्यत्र / विकल्पः संभवर्तते // केवलं केवली नूनं / निश्चः / यं नः करिष्यति // 56 // स एव प्रनितोऽत्रार्थे / तद्यावः श्वस्तदंतिके // एवं तौ निश्चयं कृत्वा / | प्रातर्यातौ जिनांतिके // 27 // युग्मं // पप्रबतुस्तमाराध्य / विनयेन स्वसंशयं // सोऽप्युवाच पुरैकेन / साधवो वां प्रशंसिताः // 2 // न चान्येन तदेतस्य / जातं बीजस्य सत्फलं / सद्धोधे पुनरन्यस्य / निर्वाजत्वेन नानवत् ॥श्णा! एतां पूर्वगवां सेवां / जिनेनोक्ता सविस्तरां // निशम्यैकस्य संजातं / वजातेः स्मरणं दाणात् // // 30 // ततोऽसौ प्रत्यये जाते / जातः संवेगजावितः // जावितश्च जिनोद्दिष्टं / प्रपेदे शासनं शुन्नं / / 31 // तत्प्रतिपत्तिसामर्थ्या-सुनकर्मानुन्नावतः // सिधिं यास्यत्यसौ काले- ऽपरः संसारमेव हि // 35 // ननु किमित्येकः सुलभवोधिको जातो नेतर इत्याद // मूलम् ।।-सर्वदा मानसे येषां / गुरुनक्तिर्गरीयसी / पुण्यानुबंधिपुण्येन / तेषां जन्मेह गीयते // 1 // व्याख्या-सर्वदा नित्यं मानसे चित्ते येषां पुण्यप्राणिनां गुरुजक्तिधर्माचार्येतिकर्त व्यतालदाणा गरीयसी महती पुण्यानुबंधिपुण्येन कुशलानुबंधिकर्मणा, तेषां जन्मिनां जन्म जाति Jun Gun Aaradhak Trust P.P.A.Gunratnasuri M.S.
SR No.036436
Book TitleDharmratna Karanda Tika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhamansuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1915
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy