________________ 315 धर्मः / // 15 // इत्यादिपटुवाक्यानि / जनों जट्पति नर्मणा / बीतिकथनं चक्रे / गुरुभ्यो रंकशिष्य. कः // 16 // गुरुनिश्वाजयोऽन्माणि / विहर्तारो वयं प्रगे। अभयोऽप्याह नो पूर्णो। मासकल्पः किमुत्सुकाः // 17 // कथितं कारणं तेन | जद्रं जावीति जटिपतं // प्रातरेव समुबाय / पुंजिता राजवर्त्मनि // 10 // रत्नानां कोट्य स्तिस्रो / घोषितं मिडिमेन च // नो शृएवंतु जनाः सर्वे / ह्य जयस्य प्रनाषितं // 15 / / युग्मं / लन्यंते कोटयस्तिस्रो / वस्तुत्रयविसर्जनात // श्रुत्वेदं मिलिता लोकाः / सर्वेऽपि धनवांच्या // 20 // किमत्र कथ्यतां वस्तु / वर्जनीयं धनार्थिना // मंत्रिणा न. णिता लोकाः / सावधानैर्निशम्यतां // 21 // पानीयं न च पानीयं / यावजीवं सचेतनं / / अंग नावह्निसेवा च / वर्जनीया प्रयत्नतः // 22 // श्रुत्वेदं विरतो लोको / यातो धनपराङ्मुखः // य. त्रेदं त्रितयं त्याज्यं / तत्र किं रत्नराशिनिः // 3 // रंकसाधुः समाहृतः / प्रोचे चाजयमंत्रिणा // जलादित्रितयं त्यक्तं / त्वया किं नेति कथ्यतां // 24 // यावजीवं मया त्यक्तं / द्रव्यतो नावतोऽ. पिच // यद्येवं ते मया दत्ता-स्तिस्रोऽपि धनराशयः // 25 // कामनोगप्रमुक्तस्य / किं कार्य र | लराशिभिः // रत्नराशित्रयत्यागी। रोरः कथमयं जनाः // 26 // धन्यश्च पुण्यवानेष / वंदनीयो Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.