________________ धर्मः | नो विधीयतां // 1 // व्याख्या-तत्तस्मात्कारणादहो इत्यामंत्रणे मानुषत्वं मनुजत्वमादिर्यस्याः सा चासौ सामग्री च तां, यादिशब्दाद्गोत्रकुलादिग्रहः, प्राप्य. लब्ध्वा दुर्लगां दुःपापां सर्वसौख्यकरे स. कलसुखकरे जैने जैनें धर्मे शुजानुष्टाने यत्नः प्रयत्नो विधीयतां क्रियतामिति. // अथ मानुष | त्वं धर्मस्य मूलहेतुतया दर्शयन्नाह // मूलम् / / मानुषत्वं हि सर्म-मूलनोवीसमं बुधैः // कथ्यते समये श्रेष्टि-पुत्रत्रयनिदर्शनात् // 1 // व्याख्या-श्लोकोऽयं सुगमो, न वरं सधर्ममूलनीवी प्रथमजांममूल्यं तया स. ममिति. तथा समये सिघांते श्रेष्टिपुत्रत्रयनिदर्शनादणिक्सुतत्रयदृष्टांतादिति. कथानकमत्र-बभू. व जुवनाख्याते / पुरे स्धिनालये // त्रिदशालयसंकाशे / वसंतपुरनामनि // 1 // श्रियः स्थानं घनो नाम | श्रेष्टी धनदसन्निनः // राजादीनां सदा मान्यः / सुहृद्रंधुसमाश्रयः // 2 // बुलुजे नि. जकां लक्ष्मी / बध्वा सुगुणरज्जुभिः // प्रियां कांतां समालिंग्य / बाहुभ्यामिव मारजाक // 3 // मान्या प्रियंवदा शांता / सुरूपा शीलशालिनी // सुजदेति बनूवास्य / गृहिणी गुणधारिणी // 4 // परस्परेण निश्विद्र-प्रेमपूरितयोस्तयोः // एकमेवाचवचित्रं / पृथक्त्वं देहमात्रतः // 5 // मनोर. | P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust