________________ धर्मः // 67 // दृष्टांतोऽयं समाख्यात / एष दाह्रतिकोऽधुना // नण्यते गव्यसत्वानां / नवनिर्वेदहेतवे // 6 // जीवः पथिकसंकाशः / संसारश्च महाटवो. // वनहस्तिसमो मृत्यु-वनिता च जरा मता // ६ए / मंद मंदं प्रयात्येषा / पृष्टौ लमा शरीरिणां // एषैव सर्वजीवानां / रादासीव नयंकरा | // 70 // कूपो नरभवः प्रोक्त-स्तमःस्तोमसमाकुलः // आयुष्कं च सरस्तंब-मूलतुल्यं प्रचयिते // 71 // वटो मोदसमः प्रोक्तः / सर्वजीवानयंकरः // यदर्थ योगिनः सर्वे / यतंते कृतनिश्चयाः // 7 // हौ पदौ मूषको ज्ञेया-वायुर्मूलविनाशकौ // पन्नगा श्व चत्वारः / कषाया दुःखहेतवः / / 13 // रोगा मधुकरीतुल्या / नानादुःखनिबंधनाः // यैरतीवाहतो जीवो / बंबमीति नवाध्वनि॥ | // 14 // वक्रमाजगरं यत्तु / तोडनरकोपमं / / गुरुकर्मरसासक्तो / धर्मकर्मपराङ्मुखः // 7 // अजव्यो दुरनव्यो वा / पुमानेष विनाव्यतां // ततो नव्या नवांनोधे-यदि वस्तरणे मतिः / / | // 76 // तदेदृदौर्न वै जाव्यं / नवनीतनवादृशैः // तदिदं धर्मसर्वस्व-मुपदेशोऽयमुत्तमः // 7 // इति मधुबिंदुरसासक्तकूपगतनरकथानकं समाप्तमिति. / / एवं स्थिते यत्कर्तव्यं तदुपदिशन्नाह // मूलम् ॥-तदहो मानुषत्वादि-सामग्री प्राप्य दुर्खनां / / सर्वसौख्यकरे नित्यं / धर्मे यः P.P.AC.Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust