________________ धर्मः | स्त्यस्ति गौतमो हीपः / समुद्रांतर्महालयः / / जलाविलो महाकलः / सुरजीणां समाश्रयः // 4 // क्षेत्रानुनावतस्तत्र / तृणानामनुजावतः // अमिसंपर्क तस्तेषां / रत्नं हि गणं नवेत // 50 // यानपात्रमतो भृत्वा / नस्मनस्तत्र गम्यते // वितीर्यते च सर्वत्र / नृतले भस्म रिशः // 11 // न. क्तं तत्र समागत्य | निषीदंते गवां गणाः // तद्दिष्टां गणिकां कृत्वा / वियते यानपात्रकं // 5 // | निजस्थाने समागत्य / नियंते च गृहापणाः // समये चामिसंपर्का-आयंते रत्नराशयः // 53 // हंत तावदुपायोऽयं / सामग्री दुर्लना पुनः // बुध्यस्ति विनवो नास्ति / वाणिज्यं क्रियते कथं // | // 14 // एवमुद्घोषयामास / प्रत्यहं शून्यमानसः / / पुररथ्यासु सर्वासु / राजमार्गेण संततं // 15 // | पुरान्निर्गम्यमानेन / ह्यन्यदा धरणीभृता // दृष्टः पृष्टश्च तेनापि / पठितं नृपतेः पुरः // 26 // हंत लब्धो मयोपायः / सामग्री तच्च दुर्खभा॥ बुध्यस्ति विनवो नास्ति / वाणिज्यं क्रियते कथं // 7 // राजाह कियता कार्य / श्रेष्टिपुत्र धनेन ते // सोऽवक्शतसहस्रेण / दीनाराणां महीपते // 27 // दत्तो नृपेन लदोऽपि / गृहीत्वा गृहमागतः // गमनार्थ. समारब्धा / सामग्री कर्तुमंजता // 27 // | संबलानि विधीयते / नानारूपाणि चरिशः // जलंधनादिसामग्री / सर्वापि प्रगुणीकृता // 6 // . P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust