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________________ 306 धर्मः सः // विधाय मृतकार्याणि / स्वपितुर्बधुनिः सह // 37 // गतशोकः स्वकार्याणि / कालेनासौ व्य. का चिंतयत् / / सम्मतः पुरलोकस्य / नृपस्यापि स सम्मतः // 30 // सम्मतो राजलोकस्य / बंधुवर्ग स्य सम्मतः // गुणानुरागतो रक्ता-स्तशुणग्रहणोद्यताः // 30 // त्रिनिर्विशेषकं // वसुसारमम न्यंत / वसुसारमिति प्रजाः // एवं सरति संसारे / ह्यतराये पुरा कृते // 40 // समीपमागते लक्ष्मी जगाम तस्य मंदिरात् // परावृतिः समायाता / दारिद्येण समन्विताः // 1 // युग्मं / / संप्राप्यावसरं को वा / जूंजते न महीतले // सानुकूले विधावासी-दनुकूलं नृपादि यत् // 42 // प्रतिकू ले च तत्सर्व / वर्तते मे प्रतिकूलं // एवं विषाणचित्तेन / वसुसारेण चिंतितं // 43 // अहो वि. धिप्रसादेन / दृष्टं जन्मयं मया // पुरा धनेन संयुक्तं / सांप्रतं धनवर्जितं // 44 // जात्यादिगु. पसंपूर्ण / परमार्थन वर्जितं // तृणादपि लघु लोको / मन्यते निर्धनं जनं // 4 // जात्यादि निर्गुणैर्मुक्तं / परलोकसमाश्रितं // मेरोरप्यधिकं लोको / मन्यते सधनं जनं // 46 // दीणोपा येन तेनेदं / संस्मृतं पितृगाषितं // उद्घाटिता च मंजूषा / पत्रकं स्वकरे कृतं // 4 // वाचितं | च रहःस्थाने / मंदनादं प्रमोदतः // हंत लब्धो मयोपायः / सामग्री तस्य दुर्लना // 4 // स्व. P.P. Ac, Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036436
Book TitleDharmratna Karanda Tika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhamansuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1915
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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