________________ टीका धर्म ष्टिना पुत्रो / वृष्भावमुपेयुषा // शिदितः पेशाक्य-रेवं पुत्रहितैषिणा // 15 // यथा वत्स / | सदा काल / कार्या जक्तिर्जिनेश्वरे / सेव्यास्तदुक्तसिखांत-वेदिनः साधवः सदा // 16 // श्रो | तव्यं च वचो जैनं / हितं पथ्यं तदंतिके // तथा जीवदया कार्या / वार्या दुर्जनसंगतिः // 17 // वक्तव्यं च वचः सत्यं / त्याज्यं चौर्य च दूरतः॥ पारदार्य परित्याज्यं / जाव्यं नात्यंतलोभिना // / // 17 // न चोक्तव्यं निशायां च / मांसमद्यादिकं तथा // तथा पुत्र विनीतेन / जाव्यं गुरुजने त्वया // 15 // दाक्षिण्यं च सदा कार्य / सर्वस्वजनबंधुषु // इत्यादि श्रेष्टिनो नित्यं / शिदयतः म्वनंदनं // 20 // वसुसारं गुणाधारं / गतः कालः कियानपि // अन्यदा च शरीरेऽस्य / व्याधिर्जातः सुदारुणः // 21 // दुःसाध्यः सर्व वैद्यानां / ततः श्रेष्टी व्यचिंतयत् // अहो मदीयमत्यंत / संजातं विधुरं वपुः // 22 // नाधुना मुच्यते मृत्योः / करोमि स्वहितं ततः // ददामि निजकं वित्तं / धर्मस्थाने यथोचितं // 23 // चतुर्जिः कलापकं / संजापयामि निःशेष-बंधुमित्रजनं निजं // कुटुंबं च यः थास्थाने / सर्व संस्थापयाम्यहं // 24 // तत्वं च वसुसारस्य / समाख्यामि वसूजवं // श्यालोच्य PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust